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श्रीमद् राजचन्द्र उपशम तथा क्षय किया जाय ऐसी आत्माकी समवायसम्बंध-अभेद सम्बन्ध । ... ' " .....
उत्तरोत्तर वर्द्धमान होती हुई दशा ।। . समश्रेणी-समभावकी चालू रहनेवाली परिणति । श्रेयिक सुख-मोक्ष सुख - - -- - '' : समस्वभावी समान स्वभावाले । -- ,' श्वासोच्छवास सार्स लेना और छोडना । समाधिमरण-समतापूर्वक देहत्याग ।
समिति--सावधानीपूर्वक गमनादि क्रियाओमें प्रवर्तन'। षट्पद-आत्मा है, वह नित्य है, कर्ता है, भोक्ता है, (आक ७६७ तथा व्याख्यानसार) -
मोक्ष है और मोक्षका उपाय है । (आक ४९३)" समुद्घीत-मूल शरीरको छोडे' विना आत्माके षट् सम्पत्ति-शम, दम, उपरति, तितिक्षा, समाधान, प्रदेशोका बाहर निकलना । समुद्घातके सात भेद
और श्रद्धा, ये वेदान्तमें पट् सम्पत्ति मानी गई हैं। हैं -वेदना, कषाय, वैक्रियिक, मारणातिक, तेजस, षड्दर्शन-(१) बौद्ध, (२) नैयायिक, (३) साख्य, आहारक और केवलीसमुद्घात ।" . . 1- (४) जैन, (५) मीमासक, और (६) चार्वाक । सरिता नदी'। '
' (आक ७११) सलिल पानी। , , . षड्द्रव्य-जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश, काल। सज्वलनकाय यथाख्यातंचारित्रको " रोकनेवाला
- अधिकसे अधिक पन्द्रह दिनकी स्थितिवाला कपाय । सकाम, इच्छासहित ।। :
संज्ञा-ज्ञानविशेष, कुछ भी आगे-पीछेको चिन्तनशक्तिसकामनिर्जरा-उदयुकाल प्राप्त होनेमे पहले आत्माके
विशेष अथवा 'स्मृति । (आक ७५२) , पुरुषार्थ द्वारा जो कर्म आत्मासे अलग हो जायें वह संयति-मयममें प्रयत्न करनेवाला ।-31 ---- सकामनिर्जरा, है; इसेअविपाक निर्जरा भी कहते हैं। सयम-इन्द्रियो तथा मनको वश रखकर पृथ्वी आदि सजीवनमूर्ति-देहधारी महात्मा 75
छहकायके जीवोकी रक्षा करना, आत्माकी अभेद सत्पुरुषार्थ- आत्माको कर्मवधनसे मुक्त कर सके ऐसा । 'चिंतना, सर्वभावसे विराम पानेरूप.। (विशेष देखें { प्रयत्न । 6 (
आक ६६४, ७६७, ८६६) . , . सतमूति-ज्ञानीपुरुप । - .......:. संयमश्रेणी-सयमके गुणकी श्रेणी ।-, .. सत्सग-जो सत्यका. रग चढाये वह सत्सग है। संवत्सरी-वर्षसम्बन्धी, वार्षिक उत्सव । - -
(मोक्षमाला शिक्षापाठ २४), सन्मार्गमें अपनी संवर-आते हुए कर्मोको रोकना, कर्मोके आनेके द्वार ५., .. जैसी योग्यता है, वैसी योग्यता रखनेवाले पुरुषोका
ना पायता रखनाल पुषा ,बघ कर देना । । । । सग।
(आर.२४९) संवत-सवरसहित; आस्रवका निरोध करनेवाला । सनातनलाशाश्वत, अत्यन्त प्राचीन, अनादिकालसे,चला संवेग-वैराग्यभाव, “मोक्षकी अभिलापा, धर्म और आया हुआ।
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धर्मके फलमे प्रोति । ---- . , , सप्तदशविधि.सयम सग्रह प्रकारका सयम- हिंसादि संसार-जीवोके परिभ्रमणका "स्थान, वह चार 5, पाँच पाप, स्पर्शनावि, पांच ‘इन्द्रिय, चार कपाय गतिरूप है।
तथा मन-वचन-कायरूप तीन दण्डका-निग्रह । ससारानप्रेक्षा“ससार अपार दुखरूप है. उसमें यह समकित-सम्यग्दर्शन (आक.७१५ मूलमार्ग:७) , जीव अनादिकालसे भटक रहा है, ऐमा विचार समदशिता-पदाथम इप्टानिष्ट-वद्धि रहितता, इच्छा- 'करना ।। ' रहितता और ममत्वरहितता। विशेप देखें पत्रांक ससाराभिरुचि-समारके प्रति तीव्र आसक्ति' “.८३० । शत्रु, मित्र, हर्प, शोक, नमस्कार तिरस्कार सस्थान-आकार। 5-1, ... , । मादि' भावोके प्रति समता । (आत्मसिद्धि दोहा १०) सहनन-शरीरमे हाड आदिका वनविशेष—गठन । समय 'कालफा.सूक्ष्मतम विभाग ।' : साखी-ज्ञानसम्बधी दोहे या पद्य ।।'', ''
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