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... श्रीमद राजबन्द :: ...
[संस्मरण-पोथी. ३, पृष्ठ २४ ] मैं केवल ज्ञानस्वरूप हूँ। ऐसा सम्यक् प्रतीत होता है.। . .: : वैसा होनेके हेतु सुप्रतीत हैं।
सर्व इंद्रियोंका संयम कर, सर्व परद्रव्यसे निजस्वरूपको व्यावृत्त कर, योगको अचलकर, उपयोगसे ___ उपयोगकी एकता करनेसे केवलज्ञान होता है ।
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संस्मरण-पोथी ३, पृष्ठ २७ ] . ..
आकाशवाणी
तप करें, तप करें; शुद्ध चैतन्यका ध्यान करें; शुद्ध चैतन्यका ध्यान करें।
____ो संस्मरण पोथी ३.० २९१ मैं एक हूँ, असंग हूँ, सर्व परभावसे मुक्त हूँ। -- ... असंख्यात. प्रदेशात्मक निजावगाहना प्रमाण हूँ।
अजन्म, अजर, अमर, शाश्वत हूँ। स्वपर्याय-परिणामी समयात्मक हूँ। शुद्ध चैतन्यस्वरूप मात्र निर्विकल्प द्रष्टा हूँ। ... : ::
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/स्वरूपसे चैतन्य
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. [ संस्मरण-पोयी ३, पृष्ठ ३१] शुद्ध चैतन्य। शुद्ध चैतन्य । शुद्ध चैतन्य । सद्भावकी प्रतीति-सम्यग्दर्शन।
शुद्धात्मपद। ....
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