________________
आभ्यंतर परिणाम अवलोकन संस्मरणपोथी १
८२९...
थोड़े समय पहले "तथारूप शक्ति मुझमें मालूम होती थी, उसमें अभी विकलता देखने में आती है, का हेतु क्या होना चाहिये यह विचार करने योग्य है ।
दर्शन की रीतिसे इस कालमें धर्मका प्रवर्तन हो, इससे जीवोंका कल्याण है अथवा संप्रदायकी तसे धर्मका प्रवर्तन हो तो जीवों का कल्याण है, यह बात विचारणीय है ! - संप्रदायकी रीतिसे वह मार्ग बहुतसे जीवोंको ग्राह्य होगा, ह्य होगा ।
दर्शनकी रीति से वह विरले जीवों को...
पी
यदि जिनाभिमत मार्ग निरूपण करने योग्य गिना जाये, तो वह संप्रदाय के प्रकारसे निरूपित : ना विशेष असंभव है । क्योंकि उसकी रचनाका सांप्रदायिक स्वरूप होना कठिन है। दर्शनको अपेक्षासे किसी ही जीवके लिये उपकारी होगा इतना विरोध आता है ।
टी
७४
[संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १६६ ]
8.2 ad
जो कोई महान पुरुष हुए हैं वे पहलेसे स्वस्वरूप (निजशक्ति) समझ सकते थे, और भावी महत्कार्यके बीज को पहले से अव्यक्तरूपमें, बोते रहते थे अथवा स्वाचरण अविरोधी, जैसा रखते थे ।
यहाँ वह प्रकार विशेष विरोधमें पड़ा हो ऐसा दिखाई देता है । उस विरोधके कारण भी यहाँ लिखे हैं१. अनिर्णयसे
२. संसारीकी रीति जैसा विशेष व्यवहार रहनेसे |
ब्रह्मचर्यको धारण ।
३.
7125
७५
[ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १६७ ]..
सोहं (महापुरुषोंने आश्चर्यकारक गवेषणा की है) ।
कल्पित परिणतिसे विरत होना जीवके लिये इतना अधिक कठिन हो पड़ा है, इसका हेतु क्या होना चाहियें ?
आत्माके ध्यानका मुख्य प्रकार कौनसा कहा जा सकता है ? उस ध्यानका स्वरूप किस तरह है ?
नमक
आत्माका स्वरूप किस तरह है ?
'केवलज्ञान जिनागम में प्ररूपित है, वह यथायोग्य है अथवा वेदांतमें प्ररूपित है, वह यथायोग्य है ?'
1952
1.
७६
[ संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ १६८ ].
प्रेरणापूर्वक स्पष्ट गमनागमन क्रिया आत्माके असंख्यातप्रदेशप्रमाणत्व के लिये विशेष विचारणीय है। प्रश्न- परमाणु एकप्रदेशात्मक, आकाश अनंतप्रदेशात्मक माननेमें जो हेतु है, वह हेतु आत्मा के असंख्यातप्रदेशत्व के लिये यथातथ्य सिद्ध नहीं होता, क्योंकि मध्यम परिणामी वस्तु अनुत्पन्न देखनेमें नहीं आती।
उत्तर-
७७
ܘܐܐ ܐ ܐ
• अमूर्तत्व की व्याख्या क्या ? अनंतत्वकी व्याख्या क्या ?
आकाशका अवगाहक-धर्मत्व किस प्रकारसे है ?
[स्मरण] १, पृष्ठ १६९ ]