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भीमद राजचन्द्र
९२७ ववाणिया, वैशाख वदी ३०, १९५६ पत्र प्राप्त हुआ।
यथार्थ देखे तो शरीर ही वेदनाकी मूर्ति है। समय समयपर जीव उस द्वारा वेदनाका ही अनुभव करता है । क्वचित् साता और प्रायः असाताका ही वेदन करता है। मानसिक असाताकी मुख्यता होनेपर भी वह सूक्ष्म सम्यग्दृष्टिमानको मालूम होती है। शारीरिक असाताकी मुख्यता स्थूल दृष्टिमानको भी - मालूम होती है। जो वेदना पूर्वकालमे सुदृढ बधसे जीवने वाँधी है, वह वेदना उदय संप्राप्त होनेपर इद्र, चंद्र, नागेन्द्र या जिनेन्द्र भी उसे रोकनेको समर्थ नही है। उसके उदयका जीवको वेदन करना ही चाहिये । अज्ञानदृष्टि जोव खेदसे वेदन करें तो भी कुछ वह वेदना कम नही होतो या चली नही जाती । सत्यदृष्टिमान जीव शातभावसे वेदन करें तो उससे वह वेदना बढ नही जाती, परतु नवीन बधका हेतु नहीं होती। पूर्वकी बलवान निर्जरा होती है । आत्मार्थीको यही कर्तव्य है।
"मै शरीर नही हूँ, परतु उससे भिन्न ऐसा ज्ञायक आत्मा हूँ, और नित्य शाश्वत हूँ। यह वेदना , मात्र पूर्व कर्मकी है, परतु मेरे स्वरूपका नाश करनेको वह समर्थ नहीं है, इसलिये मुझे खेद कर्तव्य ही नही है" इस तरह आत्मा का अनुप्रेक्षण होता है। , ,
९२८ ___ ववाणिया, ज्येष्ठ सुदी ११, १९५६ . आर्य त्रिभोवनके अल्प समयमे शातवृत्तिसे देहोत्सर्ग करनेकी खबर सुनी। सुशील मुमुक्षुने अन्य स्थान ग्रहण किया।
जीवके विविध प्रकारके मुख्य स्थान है। देवलोकमे इद्र तथा सामान्य त्रायस्त्रिशदादिकके स्थान है। मनुष्यलोकमे चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव तथा माडलिक आदिके स्थान हैं । तियंचमे भी कही इष्ट भोगभूमि, आदि स्थान है। उन सब स्थानोको जीव छोड़ेगा, यह निःसदेह है। जाति, गोत्री और बघु आदि इन सबका अशाश्वत अनित्य ऐसा यह वास हैं। -:
., शांतिः
९२९ - - ववाणिया, ज्येष्ठ सुदी १३, सोम, १९५६
परम कृपालु मुनिवरोको रोमाचित भक्तिसे नमस्कार हो । पत्र प्राप्त हुआ। चातुर्मास सबंधी मुनियोको कहाँसे विकल्प हो ? निग्रंथ क्षेत्रको किस सिरेसे बाँधे ? इस सिरेका सबध नही है। निग्रंथ महात्माओंके दर्शन और समागम मुक्तिको सम्यक् प्रतीति कराते हैं।
तथारूप महात्माके एक आर्य वचनका सम्यक् प्रकारसे अवधारण होनेसे यावत् मोक्ष होता है ऐसा श्रीमान् तीर्थकरने कहा है, वह यथार्थ है । इस जीवमे तथारूप योग्यता चाहिये।
परम कृपालु मुनिवरोको फिर नमस्कार करते हैं।
शाति
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. , ) ९३० .
, ववाणिया, ज्येष्ठ सुदी १३, सोम, १९५६
पत्र ओर 'समयसार' की प्रति संप्राप्त हुई। - - -