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आभ्यंतर परिणाम अवलोकन-संस्मरण पोथी १
१५.
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... , . : ना. गो. आ. वेदनीयका
वेदन करनेसे इनका अभाव...
जिसे हो गया है ऐसे शुद्ध स्वरूप जिन ..... चिन्मत्ति, सर्व लोकालोकभासक
चमत्कारका धाम। ..
विश्व अनादि है।
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[संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ५८]
:: जीव अनादि है। .......... .. परमाणु-पुद्गल अनादि हैं। जीव और कर्मका संबंध अनादि है। ....... सं योगी भावमें तादात्म्य अध्यास होनेसे जीव जन्म, मरण आदि दुःखोंका अनुभव करता है।
[संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ५९] पांच अस्तिकायरूप लोक अर्थात् विश्व है। ... ... ... चैतन्य लक्षण जीव है। .. .... ...: :: वर्ण-गंध-रस-स्पर्शवान परमाणु हैं। ... . वह संबंध स्वरूपसे नहीं है । विभावरूप है।
[संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ६०] शरीरमें आत्मभावना प्रथम होती हो तो होने देना, क्रमसे प्राणमें आत्मभावना करना, फिर इन्द्रियोंमें आत्मभावना करना, फिर संकल्प-विकल्परूप परिणाममें आत्मभावना करना; फिर स्थिर ज्ञानमें आत्मभावना करना । वहाँ सर्व प्रकारकी अन्यालंबनरहित स्थिति करना।
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[संस्मरण-पोयो १, पृष्ठ ६१] .. प्राण ) सोहं
वाणी . अनहद उसका ध्यान करना ।
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संस्मरण-पोथी १, पृष्ठ ६२]
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..........; ३१ · · संवत् १९५३ फागुन वदी १२, मंगलवार ...... जिन
मुख्य . . सिद्धांत .
पद्धति . . . .. शांत रस
अहिंसा लिंगादि
व्यवहार . मतांतर
समावेश शांत रस
प्रवहन ..... जिन
अन्यको लोकादि स्वरूप--
संशयकी . जिन
प्रतिमा
आचार्य धर्म - मुख्य जिनमुद्रा सूचक
.
धर्म प्राप्ति निवृत्ति समाधान फारण