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३३ वो वर्ष
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अष्टमी, चतुर्दशो आदि पर्वतिथियोमे ऐसे आशयसे सुनियमित वर्तनसे प्रवृत्ति करनेके लिये आज्ञा की है।
काविठा आदि जिस स्थलमे उस स्थितिसे आपको और समागमवासी भाइयो और बहनोको धर्मसुदृढता सप्राप्त हो, वहाँ श्रावण वदी ११ से भाद्रपद पूर्णिमा पर्यंत स्थिति करना योग्य है। आपको और दूसरे समागमवासियोको ज्ञानीके मार्गकी प्रतीतिमे नि सशयता प्राप्त हो, उत्तम गुण, व्रत, नियम, शील और देवगुरुधर्मकी भक्तिमे वीर्य परम उल्लासपूर्वक प्रवृत्ति करे, ऐसी सुदृढता करना योग्य है, और यही परम मगलकारी है।
जहाँ स्थिति करें वहाँ, उन सब समागमवासियोको ज्ञानोके मार्गको प्रतीति सुदृढ हो और वे अप्रमत्ततासे सुशीलकी वृद्धि करें, ऐसा आप अपना वर्तन रखें।
ॐ शाति
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मोरवी, श्रावण वदी १०, १९५६
भाई कीलाभाई तथा त्रिभोवन आदि मुमुक्षु, स्तभतीर्थ ।
आज 'योगशास्त्र' ग्रन्थ डाकमे भेजा गया है।
श्री अबालालको स्थिति स्तभतीर्थमे ही होनेका योग बने तो वैसे, नही तो आप और कीलाभाई आदि मुमुक्षुओके अध्ययन और श्रवण-मननके लिये श्रावण वदी ११ से भाद्रपद पूर्णिमा पर्यंत सुव्रत, नियम, और निवृत्तिपरायणताके हेतुसे इस ग्रन्थका उपयोग कर्तव्य है।
प्रमत्तभावने इस जीवका बुरा करनेमे कोई न्यूनता नही रखी, तथापि इस जीवको निज हितका ध्यान नहीं है, यही अतिशय खेदकारक है।
हे आर्य | अभी उस प्रमत्तभावको उल्लासित वीर्यसे शिथिल करके, सुशीलसहित सत्श्रुतका अध्ययन 'करके निवृत्तिपूर्वक आत्मभावका पोषण करें।
अभी नित्यप्रति पत्रसे निवृत्ति-परायणता लिखनी योग्य है । अवालालको पत्र प्राप्त हुआ होगा।
यहां स्थितिमे परिवर्तन होगा और अबालालको विदित करना योग्य होगा तो कल तक हो सकता है । यथासभव तारसे खबर दी जायेगी।
मोरवी, श्रावण वदी १०, १९५६
श्री पर्युषण-आराधना ___ एकात योग्य स्थलमे, प्रभातमे-(१) देवगुरुको उत्कृष्ट भक्तिवृत्तिसे अतरात्मध्यानपूर्वक दो घड़ीसे चार घड़ो तक उपशात व्रत । (२) श्रुत 'पद्मनदी' आदिका अध्ययन श्रवण ।
मध्याह्नमे-(१) चार घड़ी उपशात व्रत । (२) श्रुत 'कर्मग्रन्थ' का अध्ययन, श्रवण, 'सुप्टितरगिणी' आदिका थोडा अध्ययन ।
सायकालमे-(१) क्षमापनाका पाठ । (२) दो घडी उपशांत व्रत । (३) कर्मविषयकी ज्ञानचर्चा ।
सर्व प्रकारके रात्रिभोजनका सर्वथा त्याग । हो सके तो भाद्रपद पूर्णिमा तक एक वार आहारग्रहण। पचमीक दिन घी, दूध, तेल और दहीका भी त्याग । उपशात व्रतमे विशेष कालनिर्गमन | हो सके तो उपवास करना। हरी वनस्पतिका सर्वथा त्याग । आठो दिन ब्रह्मचर्यका पालन । हो सके ता भाद्रपद पूनम तक।
शमम्