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उपदेश छायां
श्रवण-मनन करे तो सम्यक्त्व प्राप्त होता है । उसके प्राप्तः होनेके बाद व्रत- पच्चक्खान आते हैं, उसके बाद पाँचवाँ गुणस्थान प्राप्त होता है ।
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सत्य समझमें आकर उसको आस्था होना यही सम्यक्त्व है । जिसे सच्चे झूठे की कीमत मालूम हो गयी है, वह भेद जिसका दूर हो गया है, उसे सम्यक्त्व प्राप्त होता है ।
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असद्गुरुसे सत् समझमें नहीं आता, समकित नहीं होता । दया, सत्य, अदत्त न लेना इत्यादि सदाचार सत्पुरुषके समीप आनेके सत्साधन हैं । सत्पुरुष जो कहते हैं वह सूत्रका, सिद्धांतका परमार्थ है । सूत्रसिद्धांत तो कागज़ है । हम अनुभवसे कहते हैं, अनुभवसे शंका दूर करनेको कह सकते हैं । अनुभव प्रगट दीपक है, और सूत्र कागज़ में लिखा हुआ दीपक है ।
ढूँढियापन या नपापनकी दुहाई देते रहें, उससे समकित होनेवाला नहीं हैं । यथार्थ सच्चा स्वरूप समझमें आये, भीतरसे दशा बदले तो समकित होता है । परमार्थमें प्रमाद अर्थात् आत्मासे बाह्य वृत्ति । जो घात करे उसे घाती कर्म कहा जाता है । परमाणुको पक्षपात नहीं है, जिस रूपसे आत्मा उसे परिणमाये उस रूपसे परिणमता है ।
निकाचित कर्म में स्थिति -बंध हो तो यथोचित बंध होता है । स्थितिकालं न हो तो वह विचारसे, पश्चात्तापसे, ज्ञानविचारसे नष्ट होता है । स्थितिकाल हो तो भोगनेपर ही छुटकारा होता है ।
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क्रोध आदि करके जिन कर्मोंका उपार्जन किया हो उन्हें भोगनेपर हो छुटकारा होता है । उदय • आनेपर भोगना ही चाहिये । जो समता रखे उसे समताका फल मिलता है। सबको अपने-अपने परिणामके . अनुसार कर्म भोगने पड़ते हैं ।
ज्ञान स्त्रीत्वमें, पुरुषत्वमें समान ही है। ज्ञान आत्माका है । वेदसे रहित होनेपर ही यथार्थ ज्ञान
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'स्त्री हो या पुरुष हो परन्तु देहमेंसे आत्मा निकल जाये तब शरीर तो मुर्दा हैं और इंद्रियाँ झरोखे जैसी हैं ।
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भगवान महावीरके गर्भका हरण हुआ होगा या नहीं ? ऐसे विकल्पका क्या काम है ? भगवान चाहे जहाँसे आये; परन्तु सम्यग्ज्ञान, दर्शन, और चारित्र थे या नहीं ? हमें तो इससे मतलब है । इनके " आश्रयसे पार होने का उपाय करना यही श्रेयस्कर है। कल्पना कर करके क्या करना है ? चाहे जैसे साधन प्राप्त कर भूख मिटानी है । शास्त्रोक्त बातोंको इस तरह ग्रहण करें कि आत्माका उपकार हो, दूसरी तरह नहीं ।
जीव डूब रहा हो तब वहाँ अज्ञानी जीव पूछे कि 'कैसे गिरा ?' इत्यादि माथापच्ची करे तो इतने में यह जीव डूब ही जायेगा, मर जायेगा। परन्तु ज्ञानी तो तारक होनेसे वे दूसरी माथापच्ची छोड़कर डूबते हुएको तुरत तारते हैं ।
'जगतकी झंझट करते करते जीव अनादिकालसे भटका है। एक घरमें ममत्व माना इसमें तो इतना • सारा दुःख है तो फिर जगतकी, चक्रवर्तीकी रिद्धिकी कल्पना, ममता करनेसे दुःखमें क्या खामी रहेगी ? अनादिकालसे इससे हारकर मर रहा है।
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ज्ञान क्या ? जो परमार्थ काममें आये वह ज्ञान है । सम्यग्दर्शनसहित ज्ञान सम्यग्ज्ञान है नवपूर्व तो अभव्य भो जानता है । परन्तु सम्यग्दर्शनके बिना उसे सूत्र अज्ञान कहा है । सम्यक्त्व हो और शास्त्र के मात्र दो शब्द जाने तो भी मोक्षके काम आते है । जो ज्ञान मोक्षके काममें नहीं आता वह अज्ञान है ।