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उपदेश छाया
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चौदह गुणस्थान है वे अश-अशसे आत्मा के गुण - बताये हैं, और अतमे वे कैसे है यह बताया है । जैसे एक हीरा है, उसके एक एक करके चौदह पहले बनाये तो अनुक्रमसे विशेष विशेष काति प्रगट होती प्रगट है, और चौदहो पहल बनानेसे अतमे हीरेकी सपूर्ण स्पष्ट काति प्रगट होती है । इसी तरह सपूर्ण गुण होनेसे आत्मा सपूर्णरूपसे प्रगट होता है ।"
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चौदह पूर्वधारी ग्यारहवे गुणस्थानंसे पतित होता है, उसका कारण प्रमाद है । 'प्रमादके कारणसे वह ऐसा मानता है कि 'अब मुझमे गुण प्रकट हुआ।' ऐसे अभिमान से पहले गुणस्थानमे जा गिरता है; और अनत कालका भ्रमण करना पडता है । इसलिये जीव अवश्य जाग्रत रहे, क्योकि वृत्तियोका प्राबल्य आ F $117751 ऐसा है कि वह हर तरहसें ठगता है ।
ग्यारहवे गुणस्थानसे जीव गिरता है 'उसका कारण यह है कि वृत्तियाँ प्रथम तो जानती हैं कि 'अभी यह शूरता में है इसलिये अपना बल चलनेवाला नही है'; और इससे चुप होकर सब दबी रहती है। 'क्रोध कडवा है इसमें ठगा नहीं जायेगा, मानसे भी ठेगा नही जायेगा, और मायाका बल चलने जैसा नही है,' ऐसा वृत्तियोने समझा 'कि' तुरत वहाँ लोभका उदय हो जाता है । 'मुझमे कैसे ऋद्धि सिद्धि और ऐश्वर्य प्रगट हुए है', ऐसी वृत्ति वहाँ आगे आनेसे उसका लोभ होनेसे जीव वहाँसे गिरता है और पहले गुणस्थान आता है।
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'इस कारणसे वृत्तियोका उपशम करने की अपेक्षा क्षय करना चाहिये ताकि ये फिरसे उद्भूत न हो । जब ज्ञानीपुरुष त्याग करानेके लिये कहे कि यह पदार्थ छोड दे तब वृत्ति भुलाती है कि ठीक है, मैं दो दिन के बाद त्याग करूँगा ।’ ऐसे भुलावेमे पड़ता है कि वृत्ति जानती है कि ठीक हुआ, अडीका चुका सौ वर्षं जीता है। इतनेमें शिथिलताके कारण मिल जाते है कि " इसके त्याग से रोग के कारण खडे होगे, इस - लिये अभी नही परंतु बादमे त्याग करूंगा।' इस तरह वृत्तियाँ ठगती हैं ।
इस प्रकार अनादिकालसे जीव ठगा जाता है । किसीका बीस बरसका पुत्र मर गया हो, उस समय उस जीवको ऐसी कडवाहट लगती है कि यह ससार मिथ्या है । परतु दूसरे ही दिन बाह्यवृत्ति यह कहकर इस विचारको विस्मरण करा देती है कि 'इसका लडका 'कल वडा हो जायेगा, ऐसा तो होता ही रहता है, क्या करे ?' ऐसा लगता है, परंतु ऐसा नही लगता कि जिस तरह वह पुत्र मर गया, उसी तरह मैं भी मर जाऊँगा । इसलिये सपझकर वैराग्य पाकर चला जाऊँ तो अच्छा है । ऐसी वृत्ति नही होती । यो वृत्ति ठग लेती है ।
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कोई अभिमानी जीव यों मान बैठता है कि 'मैं पंडित हूँ, शास्त्रवेत्ता हूँ, चतुर हूँ, गुणवान हूँ, लोग मुझे गुणवान कहते हैं', परंतु उसे जेब तुच्छ पदार्थका सयोग होता है तब तुरत ही उसकी वृत्ति उस ओर आकर्षित होती है। ऐसे जीवको ज्ञानी कहते है कि तू जरा विचार तो सही कि उस तुच्छ पदार्थंकी कीमतकी अपेक्षा तेरी कीमत तुच्छ है । जैसे एक पाईकी चार वोडो मिलती है, अर्थात् पाव पाई की एक वोड़ी है। उस वीड़ीका यदि तुझे व्यसन हो तो तू अपूर्व ज्ञानीके वचन सुनता हो तो भी यदि वहाँ कहीसे बीडीका धुआँ आ गया कि तेरे आत्मामेसे वृत्तिका धुआं निकलने लगता है, और ज्ञानीके वचनोपरसे प्रेम जाता रहता है । बीड़ी जैसे पदार्थमे, उसकी क्रियामे वृत्ति आकृष्ट होनेसे वृत्तिक्षोभ निवृत्त नही होता 'पाव पाईकी बीड़ोसे यदि ऐसा हो जाता है, तो व्यसनीकी कीमत उससे भी तुच्छ हुई, एक पाईके चार आत्मा हुए । इसलिये प्रत्येक पदार्थमे तुच्छताका विचार कर बाहर जाती हुई वृत्तिको रोकें, और उसका क्षय करें। ·
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अनाथदासजीने कहा है कि 'एक अज्ञानीके करोड़ अभिप्राय हैं और करोड ज्ञानियों का एक अभिप्राय है ।'