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३२ वो वर्ष इस तरह परमेष्ठीपदके वाचक है उनका जपपूर्वक ध्यान करो। विशेष स्वरूप श्री गुरुके उपदेशसे जानना योग्य है।
जं किंचि विचितंतो णिरीहवित्ती हवे जदा साहू । लभृणय एयत्तं तदा हु तं तस्स णिच्चय झाणं ॥५६॥
-द्रव्य सग्रह ध्यानमे एकाग्र वृत्ति रखकर साधु नि स्पृहवृत्तिवान अर्थात् सब प्रकारको इच्छाओसे रहित होता है उसे परम पुरुष निश्चय ध्यान कहते हैं। '
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' ईडर, पौष सुदी १५, गुरु, १९५५
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आपका लिखा एक पत्र तथा मुनदासके लिखे तीन पत्र मिले हैं। _ वसोमे ग्रहण किये हुए नियमके अनुसार मुनदास वनस्पतिके बारेमे विरतिरूपसे वर्तन करें। दो श्लोकोंके स्मरणके नियमको शारीरिक ' उपद्रवविशेषके बिना सदा निबाहे । गेहूँ और घीको शारीरिक हेतुसे ग्रहण करनेमे आज्ञाका अतिक्रम नही है।
किंचित् दोषका सम्भव हुआ हो तो उसका प्रायश्चित्त श्री देवकीर्ण मुनि आदिके समीप लेना योग्य है।
आपको अथवा किन्ही दूसरे मुमुक्षुओको नियमादिका ग्रहण उन मुनियोके समीप कर्तव्य है। प्रवल कारणके बिना उस सम्बन्धी पत्रादि द्वारा हमे सूचित न करके मुनियोसे तत्सम्बन्धी समाधान समझना योग्य है।
८६० मोरबी, फाल्गुन सुदी १, रवि, १९५५
-ॐनमः पत्र प्राप्त हुआ।
'नाके रूप निहाळता' इस चरणका अर्थ वीतरागमुद्रासूचक है। रूपावलोकनदृष्टिसे स्थिरता प्राप्त होनेपर स्वरूपावलोकनदृष्टिमे भी सुगमता प्राप्त होती है। दर्शनमोहका अनुभाग घटनेसे स्वरूपावलोकनदृष्टि परिणमित होती है।
महापुरुषका निरतर अथवा विशेष समागम, वीतरागश्रुतका चिंतन और गुणजिज्ञासा दर्शनमोहके अनुभागके घटनेके मुख्य हेतु है । इससे स्वरूपदृष्टि सहजमे परिणमित होती है।
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मोरबी, फागुन सुदी १, रवि, १९५५
ॐ नमः पत्र प्राप्त हुआ। 'पुरुषार्थ सिद्धि उपाय' का भाषातर गुर्जरभाषामे करनेमे आज्ञाका अतिक्रम नही है। 'आत्मसिद्धि' के स्मरणार्थ यथावसर आज्ञा प्राप्त होना योग्य है। वनमाळोदासको 'तत्त्वार्थसूत्र' विशेषत विचारना योग्य है।
हिन्दी भाषा समझमे न आती हो तो ऊगरी बहनको कुवरजीके पाससे उस ग्रंथको श्रवण कर समझना योग्य है।
शिथिलता घटनेका उपाय यदि जीव करे तो सुगम है।