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३३ वॉ वर्ष
६५५ ___धर्मपुर, चैत्र सुदी ८, शनि. १९५६
९०९
यदि 'स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा' और 'समयसार' की नकलें लिखी गयी हो तो यहाँ मूल प्रतियोंके साथ भिजवाये। अथवा मूल प्रतियाँ बबई भिजवाये और नकल की हुई प्रतियां यहां भिजवायें। नकलें अभी अधूरी हो तो कब पूर्ण होना सभव है यह लिखें।
शातिः
९१०
धर्मपुर, चैत्र सुदी ११, मंगल, १९५६
श्री 'समयसार' और 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा' भेजनेके बारेमे पत्र मिला होगा। . इस पत्रके मिलनेसे यहाँ आनेकी वृत्ति और अनुकूलता हो तो आज्ञाका अतिक्रम नही है। आपके साथ एक मुमुक्षुभाईके आनेसे भी आज्ञाका अतिक्रम नही होगा।
यदि 'गोम्मटसार' आदि कोई ग्रथ प्राप्त हो तो वह और 'कर्मग्रंथ', 'पद्मनदी पचविंशति', 'समयसार' तथा श्री 'कार्तिकेयानुप्रेक्षा' आदि ग्रथ अनुकूलतानुसार साथ रखें।
. ९११ धर्मपुर, चैत्र सुदो १३, १९५६ 'अष्टप्राभृत' के ११५ पन्ने प्राप्त हुए। स्वामी वर्धमान जन्मतिथि।
शाति
९१२
धर्मपुर, चैत्र वदी १, रवि, १९५६
धन्य ते मुनिवरा जे चाले समभावे रे, ज्ञानवंत ज्ञानीशु मळतां तनमनवचने साचा, द्रव्यभाव सुधा जे भाले, साची जिननी वाचा रे;
धन्य ते मुनिवरा, जे चाले समभावे रे।" पत्र प्राप्त हुए थे। एक पखवाड़ेसे यहाँ स्थिति है।
श्री देवकीर्ण आदि आर्योको नमस्कार प्राप्त हो । साणद और अहमदावादके चातुर्मासकी वत्ति उपशात करना योग्य है। यही श्रेयस्कर है।
खेडाकी अनुकूलता न हो तो दूसरे अनेक योग्य क्षेत्र मिल सकते हैं। अभी उनसे अनुकूलता रहे यही कर्तव्य है। • बाह्य और अन्तर समाधियोग रहता है।
परम शाति
१ भावार्थ-वे मनिवर धन्य है जो समभावपूर्वक आचरण करते हैं। जो स्वय ज्ञानवान है. और शानियों से मिलते है। जिनके मन, वचन और काया सुच्चे हैं, तथा जो द्रव्यभावसे अमृत वाणी बोलते हैं. वह जिन नगवानको सच्ची वाणी ही है । वे मुनिवर धन्य हैं जो समभावपूर्वक आचरण करते हैं।