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२३ वॉ वर्ष
२१७ यदि वह लक्षणादिसे किसी भी प्रकारसे जाना जा सकने योग्य नहीं है ऐसा माने तो जगतमे उपदेशमार्गकी प्रवृत्ति कैसे हो सकती है ? अमुकके वचनसे अमुकको बोध होता है इसका हेतु क्या है ?
अमुकके वचनसे अमुकेको बोध होता है, यह सारी वात कल्पित है, ऐसा मानें तो प्रत्यक्ष वस्तुका बाध होता है क्योकि वह प्रवृत्ति प्रत्यक्ष दिखायी देती है। केवल वध्यापुत्रवत् नही है। किसी भी आत्मवेत्तासे किसी भी प्रकारसे आत्मस्वरूपका वचन द्वारा उपदेश
[ अपूर्ण ]
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आत्मा चक्षुगोचर हो सकता है या नही ? अर्थात् आत्मा किसी भी तरह. आँखसे देखा जा सकता है या नही ?
आत्मा सर्वव्यापक है या नही ? मैं या आप सर्वव्यापक हैं या नही?
आत्माका देहातरमे जाना होता है या नही ? अर्थात् आत्मा एक गतिमेसे दूसरी गतिमे जाता है या नही ? जा सकने योग्य है या नही ?
आत्माका लक्षण क्या है? किसी भी प्रकारसे आत्मा ध्यानमे आ सकता है या नही ? • सबसे अधिक प्रामाणिक शास्त्र कौनसे है ?
बबई, फागुन, १९४६ परम सत्य है।) परम सत्य है। त्रिकाल ऐसा ही है। . . परम सत्य है ।।. व्यवहारके प्रसगको सावधानीसे, मद उपयोगसे ओर समताभावसे निभाते आना। दूसरे तेरा क्यो नही मानते ऐसा प्रश्न तेरे अन्तरमे न उठे। . दूसरे तेरा मानते हैं यह बहुत योग्य है, ऐसा स्मरण तुझे न हो। तु सर्व प्रकारसे स्वतः प्रवृत्ति कर। जीवन-अजीवनपर समवृत्ति हो । जीवन हो तो इसी वृत्तिसे पूर्ण हो । जब तक गृहवास प्रारब्धमे हो तब तक व्यवहार प्रसगमे भी सत्य सो सत्य ही हो। गृहवासमे उसमे ही ध्यान हो। गृहवासमे प्रसगमे आनेवालोको उचित वृत्ति रखना सिखा, सबको समान ही मान । तब तकका तेरा समय बहुत हो उचित बीते । अमुक व्यवहार-प्रसगका काल । उसके सिवाय तत्सम्बन्धी कार्यकाल । पूर्वकृत कर्मोदयकाल। निद्राकाल ।
यदि तेरी स्वतत्रता और तेरे क्रमसे तेरा उपजीवन-व्यवहारसम्बन्धी सन्तोपयुक्त हो तो उचित प्रकारसे अपने व्यवहारको चलाना।