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श्रीमद् राजचन्द्र
जड परिनामनिको, करता है पुद्गल, चिदानंद चेतन सुभाव आचरतु है ।'
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'एक परिनामके न करता दरव दोई',
- समयसार नाटक
बबई, पौष वदी ९, रवि, १९४८
वस्तु अपने स्वरूप ही परिणत होती है ऐसा नियम है । जीव जीवरूपसे परिणत हुआ करता है, और जड जडरूपसे परिणत हुआ करता है । जीवका मुख्य परिणमन चेतन (ज्ञान) स्वरूप है, और asका मुख्य परिणमन जडत्वस्वरूप है । जोवका जो चेतनपरिणाम है वह किसी प्रकारसे जड होकर परिणत नही होता, और जडका जो जडत्वपरिणाम है वह किसी दिन चेतनपरिणामसे परिणत नही होता, ऐसी वस्तुकी मर्यादा है, और चेतन, अचेतन ये दो प्रकारके परिणाम तो अनुभवसिद्ध है । उनमेसे एक परिणामको दो द्रव्य मिलकर नही कर सकते, अर्थात् जीव और जड़ मिलकर केवल चेतनपरिणामसे परिणत नही हो सकते । अथवा केवल अचेतन परिणामसे परिणत नही हो सकते । जीव चेतनपरिणामसे परिणत होता है और जड़ अचेतनपरिणामसे परिणत होता है, ऐसी वस्तुस्थिति है । इसलिये जिनेन्द्र कहते है कि एक परिणामको दो द्रव्य नही कर सकते । जो-जो द्रव्य है वे वे अपनी स्थितिमे ही होते हैं और अपने स्वभावमे परिणत होते हैं ।
'दोई परिनाम एक दवं न घरतु है ।'
इसी प्रकार एक द्रव्य दो परिणामोमे भी परिणमित नही हो सकता, ऐसी वस्तुस्थिति है । एक जीवद्रव्यका चेतन एव अचेतन इन दोनो परिणामोसे परिणमन नही हो सकता, अथवा एक पुद्गल द्रव्य अचेतन तथा चेतन इन दो परिणामोसे परिणमित नही हो सकता । मात्र स्वय अपने ही परिणाममे परिणमित होता है | चेतनपरिणाम अचेतनपदार्थमे नही होता, और अचेतनपरिणाम चेतनपदार्थमे नही होता, इसलिये एक द्रव्य दो प्रकारके परिणामोसे परिणमित नही होता, दो परिणामोको धारण नही
कर सकता ।
'एक करतूति दोई दर्व कबहूँ न करें, '
इसलिये दो द्रव्य एक क्रियाको कभी भी नही करते। दो द्रव्योका एकाततः मिलन होना योग्य नही है । यदि दो द्रव्य मिलकर एक द्रव्यकी उत्पत्ति होती हो, तो वस्तु अपने स्वरूपका त्याग कर दें, और ऐसा तो कभी भी नही हो सकता कि वस्तु अपने स्वरूपका सर्वथा त्याग कर दे ।
जब ऐसा नही होता, तब दो द्रव्य सर्वथा एक परिणामको पाये बिना एक क्रिया भी कहाँसे करें ? अर्थात् बिलकुल न करें ।
'दोई करतूति एक दर्व न करतु है,'
इसी तरह एक द्रव्य दो क्रियाओको धारण भी नही करता; एक समयमे दो उपयोग नही हो सकते । इसलिये
'जीव पुद्गल एक खेत अवगाही दोउ,' जीव और पुद्गल कदाचित् एक क्षेत्रको रोककर रहे हो तो भी 'अपने अपने रूप, कोउ न टरतु है,
अपने अपने स्वरूपसे किसी अन्य परिणामको प्राप्त नही होते, और इसलिये ऐसा कहते है कि'जड परिनामनिको, करता है पुद्गल',
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