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३० वां वर्ष.
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३५ जिनको प्राणधारिता नही है, जिनको प्राणधारिताका सर्वथा अभाव' हो गया है, वे – देहसे
भिन्न और वचनसे अगोचर जिनका स्वरूप हैं ऐसे- सिंद्ध जीव हैं ।
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३६ "वस्तुदृष्टिसे देखें तो "सिद्ध पद उत्पन्न नहीं होता, क्योंकि वह किसी दूसरे पदार्थ से उत्पन्न होनेवाला कार्य नही है, इसी तरह वह किसीके प्रति 'कारणरूप भी नहीं है, क्योकि किसी अन्य सम्बन्धसे उसकी प्रवृत्ति नही है ।
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३७ यदि मोक्षमे जीवका .अस्तित्व ही न हो तो शाश्वत, अशाश्वत, भव्य, अभव्य, शून्य, अशून्य, विज्ञान और अविज्ञान ये भाव किसको हो ?
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178-1-2 ३८, कोई जीव कर्मके फलका वेदन करते है, कोई जीव कर्मबधकर्तृत्वका वेदन करते हैं, और कोई जीव मात्र शुद्ध ज्ञानस्वभावका वेदन करते हैं, इस तरह वैर्दकभावसे जीवराशिके तीन भेद हैं। ३९. स्थावर कायके जीव' 'अपने अपने किये हुए कर्मोके फलका वेदन करते हैं, त्रस जीव कर्मबधे चेतनार्का वेदन करते हैं, और प्राणरहित अतीद्रिय जीव शुद्धज्ञानचेतनाका वेदन करते हैं । **,, * ४०, ज्ञान और दर्शनके भेदसे उपयोग दो प्रकारका है, उसे जीवसे सर्वदा अनन्यभूत समझें । ४१ मत, श्रुत, अवधि, मन पर्याय और केवल ये ज्ञानके पांच भेद है। कुमति, कुश्रुत और विभग ये अज्ञानके तीन भेद हैं । ये सब ज्ञानोपयोगके भेद हैं।
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४२ चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और अविनाशी अनत केवलदर्शन, ये दर्शनोपयोगके चार
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४३ आत्मासे ज्ञानगुणका सम्बन्ध है, और इसीसे आत्मा ज्ञानी है ऐसा नहीं है, परमार्थसे दोनोमे अभिन्नता हो है,
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४४, यदि द्रव्य भिन्न हो और गुण भी भिन्न हो तो एक द्रव्यके अद्भुत द्रव्य हो जायें, अथवा द्रव्यका अभाव हो जाये। --
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४५ द्रव्य और गुण अनन्यरूपसे है, दोनोमे प्रदेशभेद नही है । द्रव्यके नारासे- गुणका नाश हो जाता है और गुणके नाशसे द्रव्यका नाश हो जाता है ऐसा उनमें एकत्व है।
४६ व्यपदेश (कथन), संस्थान, सख्या और विषय इन चार प्रकारको विवक्षाओसे द्रव्यगुणके, अनेक FRX0 भेद, हो, सकते है, परन्तु परमार्थनयसे ये चारो अभेद है ! -
४७. जिस तरह यदि पुरुषके पास धन हो तो वह धनवान कहा जाता है, उसी तरह आत्माके पास ज्ञान है, जिससे वह ज्ञानवान कहा जाता है । इस तरह भेद- अभेदका स्वरूप है, इसे तत्त्वज्ञ दोनो प्रकारसे जानते है ।
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३-४८ यदि आत्मा और ज्ञानका सर्वथा भेद हो तो दोनो ही अचेतन हो जायें ऐसा वीतराग, सर्वज्ञका सिद्धांत है ।
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-- ४, ४९ · ज्ञानका सम्बन्ध होनेसे आत्मा ज्ञानी होता है, ऐसा मानने से, आत्मा और अज्ञान - जडत्वका ऐक्य, होनेका प्रसग आता है
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५० समवर्तित्व समवाय है । वह अपृथक्भूत और अपृथक् सिद्ध है, इसलिये वीतरागोने द्रव्य और गुणके सम्बन्धको अपृथक सिद्ध कहा है। । : ५१. वर्ण, रस, गंध और स्पर्श ये चार पुद्गलद्रव्यसे भिन्न कहे जाते हैं। ।। ५२. इसी तरह दर्शन और ज्ञान भी जीवसे अनन्यभूत हैं । व्यवहारसे उनका आत्मासे भेद कहा
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विशेष (गुणं) परमाणु द्रव्यसे अभिन्न हैं । व्यवहारसे वे
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