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श्रीमद राजचन्द्र सर्व जीवोके प्रति साम्यभाव उत्पन्न होता है। सर्व परद्रव्य से वृत्तिको व्यावृत्त करके आत्मा अक्लेश समाधिको पाता है।
जिन्होंने परमसुखस्वरूप, परमोत्कृष्ट शात, शुद्ध चैतन्यस्वरूप समाधिको सदाके लिये प्राप्त किया उन भगवतको नमस्कार, और जिनका उस पदमे निरंतर ध्यानरूप प्रवाह है उन सत्पुरुषोको नमस्कार ।
सर्वसे सर्वथा मैं भिन्न हूँ, एक केवल शुद्ध चैतन्यस्वरूप, परमोत्कृष्ट, अचित्य सुखस्वरूप मात्र एकात शुद्ध अनुभवरूप मैं हूँ, वहां विक्षेप क्या ? विकल्प क्या ? भय क्या ? खेद क्या? दूसरी अवस्था क्या ? मै मात्र निर्विकल्प शुद्ध, शुद्ध, प्रकृष्ट शुद्ध परमशात चैतन्य हूँ। मैं मात्र निर्विकल्प हूँ ।' मै निजस्वरूपमय उपयोग करता हूँ। तन्मय होता हूँ।
ॐ शाति शाति शातिः
८३४ ववाणिया, ज्येष्ठ सुदी ६, गुरु, १९५४ महद्गुणनिष्ठ स्थविर आर्य श्री डुगर ज्येष्ठ सुदी ३ सोमवारकी रातको नौ बजे समाधिसहित देहमुक्त हुए।
मुनियोको नमस्कार प्राप्त हो । ..
बंबई, ज्येष्ठ वदी ४, बुध, १९५४
ॐनमः
जिससे मनकी वृत्ति शुद्ध और स्थिर हो ऐसा सत्समागम प्राप्त होना बहुत दुर्लभ है। और उसमे यह दुषमकाल होनेसे जीवको उसका विशेष अंतराय है। जिस जीवको प्रत्यक्ष सत्समागमका विशेष लाभ प्राप्त हो वह महापुण्यवान है । सत्समागमके वियोगमे सत्शास्त्रका सदाचारपूर्वक परिचय अवश्य करने योग्य है।
उत्पाद । ये भाव एक वस्तुमे
एक समयमे हैं।
व्यय
। जीव और परमाणुओका
जीव
जीव
वर्त
मान
परमाणु
भाव परमाणु
संयोग