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३१ यो वर्ष
६२७ जन्मादि दुखकी आत्यन्तिक निवृत्ति नही बन पाती। वैसे महात्मा पुरुषोका योग तो दुर्लभ है, इसमे सशय नही है। परतु आत्मार्थी जीवोका योग मिलना भी कठिन है। तो भी क्वचित् क्वचित् वह योग वर्तमानमे होना सम्भव है । सत्समागम और सत्शास्त्रका परिचय कर्तव्य है । ॐ
बबई, मार्गशीर्ष सुदी ५, रवि, १९५४
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क्षयोपशम, उपशम, क्षायिक, पारिणामिक, औदयिक और सान्निपातिक, इन छ भावोको ध्यानमे रखकर आत्माको उन भावोसे अनुप्रेक्षित करके देखनेसे सद्विचारमे विशेष स्थिति होगी। -
ज्ञान, दर्शन और चारित्र जो आत्मभावरूप हैं, उन्हे समझनेके लिये उपर्युक्त भाव-विशेष अवलबनभूत है।
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बबई, मार्गशीर्ष सुदी ५, रवि, १९५४
- खेद न करते हुए शूरवीरता ग्रहण करके ज्ञानीके मार्गपर चलनेसे मोक्षपट्टन सुलभ ही है। विषयकषाय आदि विशेप विकार कर डालें, उस समय विचारवानको अपनी निर्वीर्यता देखकर बहुत ही खेद होता है, और वह आत्माकी वारवार निंदा करता है, पुनः पुन तिरस्कार-वृत्तिसे देखकर, पुन महापुरुषके चरित्र और वाक्यवा अवलंबन ग्रहण कर, आत्मामे शौर्य उत्पन्न कर, उन विषयादिके विरुद्ध अति हठ करके उन्हे हटाता है, तब तक हिम्मत हारकर बैठ नही जाता, और केवल खेद करके रुक नही जाता। इसो वृत्तिका अवलबन आत्मार्थी जीवोने लिया है, और इसीसे अतमे विजय पाई है। यह बात सभी मुमुक्षुओको मुखाग्र करके हृदयमे स्थिर करना योग्य है।
बबई, मार्गशीर्ष सुदी ५, रवि, १९५४ त्रबकलालका लिखा एक पत्र तथा मगनलालका लिखा एक पत्र तथा मणिलालका लिखा एक पत्र यो तीन पत्र मिले है । मणिलालका लिखा पत्र अभी तक चित्तपूर्वक पढा नही जा सका है।
श्री डुंगरकी अभिलाषा 'आत्मसिद्धि' पढनेकी है। इसलिये उनके पढनेके लिये उस पुस्तककी व्यवस्था करे । 'मोक्षमार्गप्रकाश' नामक ग्रन्थ श्री रेवाशकरके पास है वह श्री डुगरके लिये पढने योग्य है. प्राय' थोडे दिनोमे उन्हे वह ग्रन्थ वे भेजेंगे।
'कौनसे गुण अगमे आनेसे यथार्थ मार्गानुसारिता कही जाये ?' 'कौनसे गुण अगमे आनेसे यथार्थ सम्यग्दृष्टिता कही जाये ?' 'कौनसे गुण अगमे आनेसे श्रुतकेवलज्ञान हो ?' 'तथा कौनसी दशा होनेसे यथार्थ केवलज्ञान हो, अथवा कहा जाये ?' इन प्रश्नोंके उत्तर लिखवानेके लिये श्री डुगरसे कहे।
आठ दिन रुककर उत्तर लिखनेमे बाधा नहीं है, परतु सागोपाग, यथार्थ और विस्तारसे लिखवायें । सद्विचारवानके लिये ये प्रश्न हितकारी हैं । सभी मुमुक्षुओको यथायोग्य ।
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ववई, पोष सुदी ३, रवि, १९५४ अबकलालने क्षमा मांगकर लिखा है कि सहजभावसे व्यावहारिक वात लिखी गयी है, उस संवधर्म आप खेद न करें। यहाँ वह खेद नहीं है, परन्तु जब तक आपको दृष्टिमे वह वात रहेगी अर्थात् व्यावहारिक वृत्ति रहेगी तब तक आत्महितके लिये बलवान प्रतिवध है, यो समझियेगा। और स्वप्नमे भी उस प्रतिवधमे न रहा जाये इसका ध्यान रखियेगा।