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२९ वो वर्ष
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यहाँसे आरंभ करके ऊपर ऊपरकी भूमिकाकी उपासना करे तो जीव समझकर शात हो जाये, यह निसदेह है।
अनंत ज्ञानी पुरुषोंका अनुभव किया हुआ यह शाश्वत सुगम मोक्षमार्ग जीवके ध्यानमे नही आता, इससे उत्पन्न हुए खेदसहित आश्चर्यको भी यहाँ शात करते हैं। सत्संग, सद्विचारसे शात होने तकके सर्व पद अत्यत सच्चे हैं, सुगम हैं, सुगोचर हैं, सहज हैं और निःसंदेह हैं।
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६५२ बबई, कार्तिक सुदी ३, सोम, १९५२ श्री वेदातमे, निरूपित मुमुक्षुजीवके लक्षण तथा श्री जिनेंद्र द्वारा निरूपित सम्यग्दृष्टि जीवके लक्षण सुनने योग्य हैं, (तथारूप योग न हो तो पढने योग्य हैं;) विशेषरूपसे मनन करने योग्य हैं, आत्मामे परिणत करने योग्य हैं । अपने क्षयोपशमबलको कम जानकर अहंताममतादिका पराभव होनेके लिये नित्य अपनी न्यूनता देखना; विशेष सग प्रसंग कम करना योग्य है । यही विनती।
६५३ ठंबई, कात्तिक सुदी १३, गुरु, १९५२ दो पत्र मिले है। , आत्महेतुभूत सगके सिवाय मुमुक्षुजीवको सर्व सग कम करना योग्य है। क्योकि उसके बिना परमार्थका आविर्भूत होना कठिन है, और इस कारण श्री जिनेंद्रने यह व्यवहार द्रव्यसयमरूप साधुत्वका उपदेश किया है। यही विनती।
सहजात्मत्वरूप। ६५४
बबई, कार्तिक सुदी १३, गुरु, १९५२ पहले एक पत्र मिला था। जिस पत्रका उत्तर लिखनेका विचार किया था। तथापि विस्तारसे लिख सकना अभी कठिन मालूम हुआ, जिससे आज सक्षेपमे पहुँचके रूपमे चिट्ठी लिखनेका विचार हुआ था । आज आपका लिखा हुआ दूसरा पत्र मिला है।
अतर्लक्ष्यवत् अभी जो वृत्ति रहती हुई दीखती है वह उपकारी है, और वह वृत्ति क्रमसे परमार्थकी यथार्थतामे विशेष उपकारभूत होती है । यहाँ आपने दोनो पत्र लिखे, इससे कोई हानि नही है। अभी सुदरदासजीका ग्रथ अथवा श्री योगवासिष्ठ पढियेगा । श्री सोभाग यहाँ है ।
६५५ बबई, कार्तिक वदी ८, रवि, १९५२ , निशदिन नैनमें नोंद न आवे, __ नर तबहि नारायन पावे।
-श्री सुन्दरदासजी
६५६ ववई, मार्गशीर्ष सुदी १०, मगल, १९५२ श्री त्रिभोवनके साथ इतना सूचित किया था कि आपके पहले पत्र मिले थे, उन पत्रो आदिसे वर्तमान दशाको जानकर उस दशाको विशेषताके लिये संक्षेपमे कहा था।
जिस जिस प्रकारसे परद्रव्य (वस्तु) के कार्यकी अल्पता हो, निज दोष देखनेका दृढ ध्यान रहे, और सत्समागम, सत्शास्त्रमे वर्धमान परिणतिसे परम भक्कि रहा करे उस प्रकारको आत्मता करते हुए, तथा ज्ञानीके वचनोका विचार करनेसे दशा विशेषता प्राप्त करते हुए यथार्थ समाधिके योग्य हो, ऐसा लक्ष्य रखियेगा, ऐसा कहा था। यही विनती।