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२९ यो वर्ष
शका - शिष्य उवाच
[ मोक्षका उपाय नही है ऐसा शिष्य कहता है - ]
होय कदापि मोक्षपद, नहि अविरोध उपाय । - कर्मो काळ अनतनां, शायी छेद्यां जाय ? ॥९२॥
मोक्षपद कदाचित्' हो तो भी वह प्राप्त होने का कोई अविरोधी अर्थात् यथातथ्य प्रतीत हो ऐसा उपाय मालूम नही होता, क्योकि अनतकाल के कर्म हैं, उनका ऐसी अल्पायुवाली मनुष्यदेहसे छेदन कैसे किया जाये ? ||९२ ॥
अथवा मत दर्शन घणां, कहे उपाय अनेक ।
तेमां मत साचो कयो, बने न एह विवेक ॥९३॥
अथवा कदाचित् मनुष्यदेहकी अल्पायु आदिकी शका छोड़ दे, तो भी मत और दर्शन बहुत से है, और वे मोक्षके अनेक उपाय कहते है, अर्थात् कोई कुछ कहता है और कोई कुछ कहता है उनमे कौनसा मत सच्चा है, यह विवेक नही हो सकता ||९३||
कई जातिमां मोक्ष छे, कया वेषमा मोक्ष । एनो निश्चय ना बने, घणा भेद ए दोष ॥ ९४ ॥
ब्राह्मण आदि किस जातिमे मोक्ष है, अथवा किस वेषमे मोक्ष है, इसका निश्चय भी नही हो सकने जैसा है, क्योकि वैसे अनेक भेद है, और इस दोषसे भी मोक्षका उपाय प्राप्त होने योग्य दिखायी नहीं देता ॥९४॥
इससे ऐसा लगता है जान से भी क्या उपकार हो अशक्य दिखायी देता है ॥९५॥
तेथी एम जणाय छे, मळे न मोक्ष उपाय | जीवादि जाण्या तणो शो उपकार ज थाय ? ॥९५॥
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कि मोक्षका उपाय प्राप्त नही हो सकता, इसलिये जीव आदिका स्वरूप ? अर्थात् जिस पदके लिये जानना चाहिये उस पदका उपाय प्राप्त होना
पांचे उत्तरथी थयु, समाधान सर्वांग |
समजुं मोक्ष उपाय तो, उदय उदय सद्भाग्य ॥९६॥
आपने जो पाँचो उत्तर कहे हैं, उनसे मेरी शकाओका सर्वांग अर्थात् सर्वथा समाधान हुआ है, परतु यदि मै मोक्षका उपाय समझू तो सद्भाग्यका उदय उदय हो । यहाँ 'उदय' 'उदय' शब्द दो बार कहा है, वह पाँच उत्तरोके समाधानसे हुई मोक्षपदकी जिज्ञासाकी तीव्रता प्रदर्शित करता है || ९६ ॥
समाधान-सद्गुरु उवाच
[मोक्षका उपाय हैं ऐसा सद्गुरु समाधान करते हैं --] पाचे उत्तरनी थई, आत्मा विषे प्रतीत ।
थाशे मोक्षोपायनी, सहज प्रतीत ए रीत ॥९७॥ ॥
जिस तरह तेरे आत्मामे पाँचो उत्तरोकी प्रतीति हुई है, उसी तरह तुझे मोक्षके उपायको भी सहज प्रतीति होगी । यहाँ 'होगी' और 'सहज' ये दो शब्द सद्गुरुने कहे हैं, वे यह बतानेके लिये कहे हैं कि जिसे पाँच पदोकी शंका निवृत्त हो गयी है उसके लिये मोक्षोपाय समझना कुछ कठिन ही नही है, तथा शिष्यकी विशेष जिज्ञासावृत्ति जानकर उसे अवश्य मोक्षोपाय परिणमित होगा, ऐसा भासित होनेसे ( वे शब्द ) कहे हैं, ऐसा सद्गुरुके वचनका आशय है ||१८||