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"जीवके लिये मोक्षमार्ग है, नही तो उन्मार्ग है।
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सर्वं जीवोंको हितकारी, सर्वं दु खोके क्षयका एक आत्यंतिक उपाय, परम सदुपायरूप वीतरागदर्शन है । उसकी प्रतीतिमे, उसके अनुसरणसे, उसकी आज्ञाके परम अवलबनसे जीव' भवसागर तर जाता है। 'समवायाग सूत्र' में कहा है 449
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सर्वं दु खोका क्षय करनेवाला एक परम सदुपाय,
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श्रीमद राजचन्द्र
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आत्मा क्या है ? कर्म क्या है ? उसका कत्र्ता कौन है ? उसका उपादान कौन है ?- निमित्त कौन है ? ' उसकी स्थिति कितनी है ? कर्त्ता कैसे है ? किस परिमाणमे वह बाँध सकता है ?" इत्यादि भावोका स्वरूप जैसा निर्ग्रथसिद्धातमे स्पष्ट, सूक्ष्म और संकलनापूर्वक है वैसा किसी भी दर्शनमें नही है ।" [अपूर्ण ]
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कसंवत् १९५३
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अपने समाधान के लिये यथाशक्ति जैनमार्गको जाना है, उसका सक्षेपमे कुछ भी विवेक (विचार) करता है "# 2, 1,, *
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वह जैनमार्ग जिस पदार्थका अस्तित्व है उसका अस्तित्व और जिसका अस्तित्व नही है ' उसका नास्तित्व मानता है
जिसका अस्तित्व है, वह दो प्रकारसे है, ऐसा कहते है जीव और अजीव । ये पदार्थ स्पष्ट भन्न हैं । कोई अपने स्वभावका त्याग नही कर सकता ।
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अजीव रूपो और अरूपी दो प्रकारसे है।
'जीव अनत हैं । - प्रत्येक जीव तीनो कालोमे भिन्न भिन्न है । ज्ञान, दर्शन आदि लक्षणो से जीव पहचाना जाता है । प्रत्येक जीव असख्यात प्रदेशकी अवगाहनासे रहता है । संकोच विकासका भांजन है । अनादिसे कर्मग्राहक है । तथारूप स्वरूप जाननेसे, प्रतीतिमे लानेसे, स्थिर परिणाम होनेपर उस कर्म की निवृत्ति होती है । स्वरूपसे जीव वर्ण, गध, रस और स्पशंसे रहित है । अजर, अमर और शाश्वत वस्तु
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है ।
' ७५६ S 3 जैनमार्गविवेक
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७५७ ॐ
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नमः सिद्धेभ्यः " मोक्षसिद्धांत
अनत अव्याबाध सुखमय परमपदकी प्राप्ति के लिये भगवान सर्वज्ञद्वारा निरूपित' 'मोक्षसिद्धात' उस भगवानको परम भक्तिसे नमस्कार करके कहता हूँ ।
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द्रव्यानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और धर्मकथानुयोगले, महानिधि वीतराग प्रवचनको नमस्कार करता हूँ | 1747
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- कर्मरूप-वैरीका पराजय करनेवाले अर्हत भगवान, शुद्ध चेतन्यपद्मे सिद्धालयमे विराजमान सिद्ध भगवान, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन मोक्षके पाँच आचारोंका आचरण करनेवाले और अन्य
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