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________________ ५९० 11 J "जीवके लिये मोक्षमार्ग है, नही तो उन्मार्ग है। 16. wine 8 सर्वं जीवोंको हितकारी, सर्वं दु खोके क्षयका एक आत्यंतिक उपाय, परम सदुपायरूप वीतरागदर्शन है । उसकी प्रतीतिमे, उसके अनुसरणसे, उसकी आज्ञाके परम अवलबनसे जीव' भवसागर तर जाता है। 'समवायाग सूत्र' में कहा है 449 क सर्वं दु खोका क्षय करनेवाला एक परम सदुपाय, 201507 है श्रीमद राजचन्द्र T तथा 2 लो आत्मा क्या है ? कर्म क्या है ? उसका कत्र्ता कौन है ? उसका उपादान कौन है ?- निमित्त कौन है ? ' उसकी स्थिति कितनी है ? कर्त्ता कैसे है ? किस परिमाणमे वह बाँध सकता है ?" इत्यादि भावोका स्वरूप जैसा निर्ग्रथसिद्धातमे स्पष्ट, सूक्ष्म और संकलनापूर्वक है वैसा किसी भी दर्शनमें नही है ।" [अपूर्ण ] * 1 - Folk कसंवत् १९५३ 17, कुल 1 1 की अपने समाधान के लिये यथाशक्ति जैनमार्गको जाना है, उसका सक्षेपमे कुछ भी विवेक (विचार) करता है "# 2, 1,, * PP वह जैनमार्ग जिस पदार्थका अस्तित्व है उसका अस्तित्व और जिसका अस्तित्व नही है ' उसका नास्तित्व मानता है जिसका अस्तित्व है, वह दो प्रकारसे है, ऐसा कहते है जीव और अजीव । ये पदार्थ स्पष्ट भन्न हैं । कोई अपने स्वभावका त्याग नही कर सकता । 19 15 अजीव रूपो और अरूपी दो प्रकारसे है। 'जीव अनत हैं । - प्रत्येक जीव तीनो कालोमे भिन्न भिन्न है । ज्ञान, दर्शन आदि लक्षणो से जीव पहचाना जाता है । प्रत्येक जीव असख्यात प्रदेशकी अवगाहनासे रहता है । संकोच विकासका भांजन है । अनादिसे कर्मग्राहक है । तथारूप स्वरूप जाननेसे, प्रतीतिमे लानेसे, स्थिर परिणाम होनेपर उस कर्म की निवृत्ति होती है । स्वरूपसे जीव वर्ण, गध, रस और स्पशंसे रहित है । अजर, अमर और शाश्वत वस्तु 1 है । ' ७५६ S 3 जैनमार्गविवेक - :: ७५७ ॐ ܕ ܕ नमः सिद्धेभ्यः " मोक्षसिद्धांत अनत अव्याबाध सुखमय परमपदकी प्राप्ति के लिये भगवान सर्वज्ञद्वारा निरूपित' 'मोक्षसिद्धात' उस भगवानको परम भक्तिसे नमस्कार करके कहता हूँ । 555 द्रव्यानुयोग, करणानुयोग, चरणानुयोग और धर्मकथानुयोगले, महानिधि वीतराग प्रवचनको नमस्कार करता हूँ | 1747 नी - कर्मरूप-वैरीका पराजय करनेवाले अर्हत भगवान, शुद्ध चेतन्यपद्मे सिद्धालयमे विराजमान सिद्ध भगवान, ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप और वीर्य इन मोक्षके पाँच आचारोंका आचरण करनेवाले और अन्य TILIT हन HT
SR No.010840
Book TitleShrimad Rajchandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Jain
PublisherShrimad Rajchandra Ashram
Publication Year1991
Total Pages1068
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Rajchandra
File Size49 MB
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