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..३० वो वर्ष
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.. .... सवत् १ -ॐ सर्वज्ञाय नमः । नमः सद्गुरवे।, -5-7 ... ...
पंचास्तिकाय . . . . . . . . . १. सौ इन्द्रोंसे वन्दनीय, तीनलोकके कल्याणकारी, मधुर और निर्मल जिनके वाक्य है, जिनके गुण हैं, जिन्होने ससारका पराजय किया है ऐसे भगवान सर्वज्ञ वीतरागको नमस्कार । . ---- २ सर्वज्ञ महामुनिके मुखसे उत्पन्न ,अमृत, चार गतिसे जीवको मुक्तकर निर्वाण प्राप्त करा आगमको नमन करके यह शास्त्र कहता हूँ उसे श्रवण करें। - .. ३.. पाँच अस्तिकायके समूहरूप अर्थसमयको सर्वज्ञ वीतरागदेवने 'लोक', कहा है, उसके अ मात्र आकाशरूप अनन्त 'अलोक' है। ६, १. ४-५ , 'जीव', 'पुद्गलसमूह', 'धर्म', 'अधर्म' तथा 'आकाश' ये पदार्थ, अपने अस्तित्वमे नि रहते हैं, अपनी सत्तासे अभिन्न है, और अनेक प्रदेशात्मक है। - अनेक गुण, और पर्यायसहित अस्तित्वस्वभाव है,वे अस्तिकाय' हैं। उनसे त्रैलोक्य उत्पन्न होता है।। - ... ,
६ ये अस्तिकाय तीनो कालमे भावरूपसे परिणामी हैं, और परावर्तन लक्षणवाले काल छहो 'द्रव्यसंज्ञा' को प्राप्त होते हैं। ' . . . . . .
. ७. ये द्रव्य एक दूसरेमे प्रवेश करते है, एक दूसरेको अवकाश देते हैं, परस्पर मिल जाते है अलग हो जाते है। परन्तु अपने स्वभावका त्याग नहीं करते।
' ८ सत्तास्वरूपसे सब पदार्थ एकत्ववाले हैं, वह सत्ता अनन्त प्रकारके स्वभाववाली है। गुण और पर्यायात्मक है, उत्पादव्ययध्रौव्यस्वरूप एवं सामान्य विशेषात्मक है। . - -
९ जो उन उन अपने सद्भावपर्यायो गुणपर्याय स्वभावोको प्राप्त होता हे उसे द्रव्या कहते अपनी सत्तासे अनन्य है। 1 -१० द्रव्य सत् लक्षणवाला है, जो उत्पादव्ययध्रौव्यसहित है, जो गुणपर्यायका आश्रय है. . . .११ द्रव्यकी उत्पत्ति और विनाश नहीं होता, उसका 'अस्ति' स्वभाव ही है। उत्पाद, व्य ध्रुवत्व ये पर्यायके कारण होते है।
. १२ पर्यायरहित द्रव्य नही है और द्रव्यरहित पर्याय नहीं है, दोनो अनन्यभावसे है, ऐसा = कहते हैं। ' १३ द्रव्यके बिना गुण नही होते और गुणोके बिना द्रव्य नहीं होता, इसलिये द्रव्य अ दोनोका अभिन्न भाव है। .. .१४ 'स्यात् 'अस्ति', 'स्यात् नास्ति', 'स्यात् अस्ति नास्ति', 'स्यात् अवक्तव्य', 'स्यात अवक्तव्य', 'स्यात् नास्ति अवक्तव्य' 'स्यात् अस्तिनास्ति अवक्तव्य', यो, विवक्षासे द्रव्य भग होते हैं! - .
' भाव-दत्यका नाश नहीं होता, और अभाव-अद्रव्यकी -उत्पत्ति नहीं होती। गण स्वभावसे उत्पाद और व्यय होते हैं।
१६ जीव आदि पदार्थ है । जीवके गुण चेतना और उपयोग हैं। देव, मनुष्य, नारक आदि, जीवके अनेक पर्याय हैं ।।१६।।
१. देखें आक ८६६। . . . . .
सर्वज्ञदेव कहते हैं।
पाल
उनक
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व्यापा