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श्रीमद् राजचन्द्र
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. ३११ ...' 51 -- - बबई, पौष सुदी ३, रवि, १९४। , अनुक्रमे सयमा स्पर्शतो जी, पाम्यो,क्षायकभाव रे।'; in
- संयम श्रेणी .फूलडे :,जी, पूचं पद । निष्पाव, रे॥ .. , :: gr) शुद्ध निरंजन अलख अगोचर, एहि ज साध्य सुहायो रे।
. ..ज्ञानक्रिया अवलंबी फरस्यो, अनुभव सिद्धि उपायो रे ॥
रायसिद्धारथ वंश विभूषण, त्रिशला राणी जायो रे । अज अजरामर सहजानंदी, ध्यानभुवनमां ध्यायो रे॥
नागर सुख पामर नव जाणे, वल्लभसख न कुमारी ! 1 .
अनुभव 'वण तेमध्यानतणं सुख कोण जाणे नरनारी ॥7, की
--३१२. बंबई, पौष सुदी ५, मंगल, १९४ ...'.-... {
क्षायिक चारित्रको याद करते है। जनक विदेहीकी बात ध्यानमे है । करसनदासका पत्र ध्यानमें है। ...
९ बोधस्वरूपके यथायोग्य . . ३१३ . बबई, पौष सुदी ७, गुरु, १९४० , : ज्ञानीके आत्माको देखते है और वैसे होते हैं।। आपकी स्थिति ध्यानमे है। आपकी इच्छा भी ध्यानमे है। आपने गुरुके अनुग्रहवाली जो बार लिखी है वह भी सच है । कर्मका उदय भोगना पडता है यह भी सच है। आप समय-समयपर अतिशय खेदको प्राप्त हो जाते है, यह भी जानते है | आपको वियोगका असह्य सन्ताप रहता है यह भी जानते है । बहुत प्रकारसे सत्सगमे रहने योग्य है, ऐसा मानते है, तथापि अभी तो यो सहन करना योग्य माना है।
____ चाहे जैसे देशकालमें यथायोग्य रहना, और यथायोग्य रहनेकी इच्छा ही किये जाना यह उपदेश है। आप अपने मनको चिन्ता लिख भेजे तो भी हमे आपपर खेद नहीं होगा । ज्ञानी अन्यथा नहीं करते, ऐसा करना उन्हे नही सूझता, ऐसी स्थितिमे दूसरे उपायकी इच्छा भी न करें ऐसी विनती है।
____ कोई इस प्रकारका उदय है कि अपूर्व-वीतरागताके होनेपर भी हम व्यापार सम्बन्धी कुछ प्रवृत्ति कर सकते है, तथा खाने-पीने आदिकी अन्य प्रवृत्तियाँ, भी बड़ी मुश्किलसे कर पाते हैं। मन कही भी विराम नही पाता, प्राय यहाँ किसीके समागमकी वह इच्छा नहीं करता। कुछ लिखा नहीं जा सकता। 'अधिक परमार्थवाक्य कहनेकी इच्छा नहीं होती। किसीकें द्वारा पूछे गये प्रश्नोके उत्तर जानते हुए भी लिख नहीं सकते । चित्तका भी अधिक सग नही, है, और आत्मा आत्मभावमे रहता है | Arif IFF/2_
१ भावार्य-शुद्ध = निरावरण, निरजन = रागद्वेपरूपी मैलसे रहित; अलख = अलक्ष्य और अगोचर इन्द्रियातोत,परमात्मा स्वरूपानन्द विलासी एव परभाव उदासी है । यही हमें साध्यरूपसे सुहाया है । हे आत्मन् । सम्यग्ज्ञान एव • सम्यक्रियाका अवलम्वन लेकर स्वरूपमें स्थिर होनेके अपूर्व आनन्दका अनुभव करना ही मोक्षसिद्धिका उपाय है।
२ भावार्थ-त्रिशला रानीसे उत्पन्न, राजा सिद्धार्थके, वशविभूषण, जन्म-जरा मरणरहित एव सहज ।। स्वरूपानन्दी वीर परमात्माका ध्यानरूप भावभुवनमे ध्यान किया। 1 -31- ।। .. ३. भावार्थ-पामर-ग्रामीण। व्यक्ति नगरके सुखको नही जानता है। और कुमारी पतिके, सुर्खको नहीं
जानती है। इसी तरह अनुभवके विना ध्यानके सुखको भला कौनसा स्त्री-पुरुष जानता है 307 -
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