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श्रीमद राजचन्द्र ___ इस प्रश्नका समाधान पत्र द्वारा बताना क्वचित् हो सके । तथापि लिखनेमे अभी विशेष उपयोगकी प्रवृत्ति नही हो सकती । तथा श्री देवकरणजीको भी अभी इस विषयमे यथाशक्ति विचार करना चाहिये।
सहजस्वरूपसे यथायोग्य ।
ववाणिया, भादों सुदी ७, मंगल, १९५१ आज दिन तक अर्थात् संवत्सरी तक आपके प्रति मन, वचन और कायाके योगसे मुझसे जानेअनजाने कुछ अपराध हुआ हो उसके लिये शुद्ध अत करणपूर्वक लघुताभावसे क्षमा मांगता हूँ । इसी प्रकार अपनी बहनको भी खमाता हूँ। यहाँसे इस रविवारको विदाय होनेका विचार है।
लि० रायचंदके यथा०
६३५ ववाणिया, भादो सुदी ७, मगल, १९५१ सवत्सरी तक तथा आज दिन तक आपके प्रति मन, वचन और कायाके योगसे जो कुछ जाने अनजाने अपराध हुआ हो उसके लिये सर्व भावसे क्षमा मांगता हूँ। तथा आपके सत्समागमवासी सब भाइयो तथा बहनोसे क्षमा मांगता हूँ।
__यहाँसे प्रायः रविवारको जाना होगा ऐसा लगता है। मोरबीमे सुदी १५ तक स्थिति होना सम्भव हे । उसके बाद किसी निवृत्तिक्षेत्रमे लगभग पन्द्रह दिनकी स्थिति हो तो करनेके लिये चित्तकी सहजवृत्ति रहती है। कोई निवृत्तिक्षेत्र ध्यानमे हो तो लिखियेगा।
आ० सहजात्मस्वरूप।
ववाणिया, भादो सुदी ९, गुरु, १९५१ निमित्तसे जिसे हर्ष होता है, निमित्तसे जिसे शोक होता है, निमित्तसे जिसे इद्रियजन्य विषयके प्रति आकर्षण होता है, निमित्तसे जिसे इन्द्रियके प्रतिकूल प्रकारोमे द्वेष होता है, निमित्तसे जिसे उत्कर्ष आता है, निमित्तसे जिसे कषाय उत्पन्न होता है, ऐसे जीवको यथाशक्ति उन निमित्तवासी जीवोका सग छोड़ना योग्य है, और नित्य प्रति सत्सग करना योग्य है। - सत्सगके अयोगमे तथाप्रकारके निमित्तसे दूर रहना योग्य है। क्षण क्षणमे, प्रसंग प्रसंगपर और निमित्त निमित्तमे स्वदशाके प्रति उपयोम देना योग्य है।
आपका पत्र मिला है । आज तक सर्व भावसे क्षमा मांगता हूँ। '
__ववाणिया, भादो सुदी ९. गुरु, १९५१ आज दिन तक सर्व भावसे क्षमा मांगता हूँ। नोचे लिखे वाक्य तथारूप प्रसगपर विस्तारसे समझने योग्य हैं।
'अनुभवप्रकाश' ग्रन्थमेसे श्री प्रह्लादजीके प्रति सद्गुरुदेवका कहा हुआ जो उपदेशप्रसग लिखा, वह वास्तविक है। तथारूपसे निर्विकल्प और अखंड स्वरूपमे अभिन्नज्ञानके सिवाय अन्य कोई सर्व दुख मिटानेका उपाय ज्ञानीपुरुषोने नहीं जाना है। यही विनती।।