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२८ वॉ वर्ष
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बंबई, चैत्र सुदी १५, १९५१
परम स्नेही श्री सोभागके प्रति, श्री सायला ।
मोरबीसे लिखा हुआ एक पत्र मिला है । यहाँसे रविवारको एक चिट्ठी मोरबी लिखी है । वह आपको सालामे मिली होगी ।.
श्री डुगरके साथ इस तरफ आनेका विचार रखा है, उस विचारके अनुसार आनेमे श्री डुंगरको भी कोई विक्षेप न करना योग्य है, क्योकि यहाँ मुझे विशेष उपाधि अभी तुरत नही रहेगी ऐसा सम्भव है । दिन तथा रातका बहुतसा भाग निवृत्तिमे बिताना हो तो मुझसे अभी वैसा हो सकता है ।
परम पुरुपकी आज्ञाके निर्वाहके लिये तथा बहुतसे जीवोके हितके लिये आजीविकादि सम्बन्धी आप कुछ लिखते हैं, अथवा पूछते हैं, उनमे मौन जैसा बरताव होता है, उसमे अन्य कोई हेतु नही है, जिससे मेरे वैसे मौन के लिये चित्तमे अविक्षेपता रखियेगा, और अत्यन्त प्रयोजनके बिना अथवा मेरी इच्छा जाने बिना उस विषयमे मुझे लिखने या पूछनेका न हो तो अच्छा । क्योकि आपको और मुझे ऐसी दशामे रहना विशेष आवश्यक है, और उस आजीविकादिके कारणसे आपको विशेष भयाकुल होना भी योग्य नही है । मुझपर कृपा करके इतनी बात तो आप चित्तमे दृढ करें तो हो सकती है । बाकी किसी तरह कभी भी भेदभावकी बुद्धिसे मौन धारण करना मुझे सुझे, ऐसा सम्भवित नही है, ऐसा निश्चय रखिये | इतनी सूचना देनी भी योग्य नही है, तथापि स्मृतिमे विशेषता आनेके लिये लिखा है ।
आनेका विचार करके तिथि लिखियेगा । जो कुछ पूछना - करना हो वह समागममे पूछा जाय तो बहुतसे उत्तर दिये जा सकते है । अभी पत्र द्वारा अधिक लिखना नही हो सकता ।
डाकका समय हो जानेसे यह पत्र पूरा करता हूँ । श्री डुगरको प्रणाम कहियेगा । और हमारे प्रति लौकिक दृष्टि रखकर आनेके विचारमे कुछ शिथिलता न करें, इतनी विनती करियेगा ।
आत्मा सबसे अत्यत प्रत्यक्ष है, ऐसा परम पुरुष द्वारा किया हुआ निश्चय भी अत्यन्त प्रत्यक्ष है । यही विनती । आज्ञाकारी रायचदके प्रणाम विदित हो ।
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बबई, चैत्र वदी ५, रवि, १९५१
कितने ही विचार विदित करनेकी इच्छा रहा करती होनेपर भी किसी उदयके प्रतिवधसे वैसा हो सकने मे बहुतसा समय व्यतीत हुआ करता है । इसलिये विनती है कि आप जो कुछ भी प्रसंगोपात्त पूछने अथवा लिखनेकी इच्छा करते हो तो वैसा करनेमे मेरी ओरसे प्रतिबंध नही है, ऐसा समझकर लिखने अथवा पूछनेमे न रुकियेगा । यही विनती । आ० स्व० प्रणाम ।
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बंबई, चैत्र वदी ८, वुध, १९५१
चेतनका चेतन पर्याय होता है, और जडका जड पर्याय होता है, यही पदार्थको स्थिति है । प्रत्येक समयमे जो जो परिणाम होते है वे वे पर्याय हैं । विचार करनेसे यह बात यथार्थ लगेगी ।
अभी कम लिखना बन पाता है, इसलिये बहुतसे विचार कहे नही जा सकते, तथा वहुतसे ' विचारोका उपशम करनेरूप प्रकृतिका उदय होनेसे किसीको स्पष्टतासे कहना नही हो सकता । अभी यहाँ इतनी अधिक उपाधि नही रहती, तो भी प्रवत्तिरूप सग होनेसे तथा क्षेत्र उत्तापरूप होनेसे थोडे दिनके लिये यहाँसे निवृत्त होनेका विचार होता है। अब इस विषय मे जो होना होगा सो होगा। यही विनती ।
प्रणाम ।