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श्रीमद राजचन्द्र
आपको तथा श्री डुगरको उपर्युक्त बोलोपर यथाशक्ति विशेष विचार करना योग्य है । तत्सम्बन्धी पत्रद्वारा आपसे लिखाने योग्य लिखियेगा । अभी यहाँ उपाधिकी कुछ न्यूनता है । यही विनती ।
आ० स्व० यथायोग्य ।
बंबई, आषाढ वदी, रवि, १९५१
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श्रीमद् वीतरागको नमस्कार
शुभेच्छासम्पन्न भाई अबालाल तथा भाई त्रिभोवनके प्रति, श्री स्तम्भतीर्थं ।
भाई अबाला के लिखे चिट्ठी-पत्र तथा भाई त्रिभोवनका लिखा पत्र मिला है। कारण विशेषत लिखना, सूचित करना नही हो पाता । जिससे किसी मुमुक्षुको होने तरफसे जो विलम्ब होता है, उस विलम्बको निवृत्त करनेकी वृत्ति होती है, परन्तु उदयके अभी तक वैसा ही व्यवहार होता है ।
आषाढ वदी २ को इस क्षेत्रसे थोडे समय के लिये निवृत्त हो सकनेकी सम्भावना थी, उस समय के आसपास दूसरे कार्यंका उदय प्राप्त होनेसे लगभग आषाढ वदी ३० तक स्थिरता होना सम्भव है । यहाँसे निकलकर ववाणिया जाने तक बीचमे एकाध दो दिनकी स्थिति करना चित्तमे यथायोग्य नही लगता । ववाणियामे कितने दिनकी स्थिति सम्भव है, यह अभी विचारमे नही आ सका है, परन्तु भादो सुदी दशमीके आसपास यहाँ आनेका कुछ कारण सम्भव है और इससे ऐसा लगता है कि ववाणिया श्रावण सुदी १५ तक अथवा श्रावण वदी १० तक रहना होगा । लौटते समय श्रावण वदी दशमीको वाणियासे निकलना हो तो भादो सुदी दशमी तक बीचमे किसी निवृत्तिक्षेत्रमे रुकना बन सकता है । अभी इस सम्बन्धमे अधिक विचार करना अशक्य है ।
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अमुक आत्मदशा योग्य लाभमे मेरी
किसी योग से
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अभी इतना विचार आता है कि यदि किसी निवृत्तिक्षेत्रमे रुकना हो तो भी मुमुक्षु भाइयोसे अधिक प्रसग करनेका मुझसे होना अशक्य है, यद्यपि इस बातपर अभी विशेष विचार होना सम्भव है ।
सत्समागम और सत्शास्त्रका लाभ चाहनेवाले मुमुक्षुओको आरम्भ परिग्रह और रसस्वादादिका प्रतिबन्ध कम करना योग्य है, ऐसा श्री जिनादि महापुरुषोने कहा है । जब तक अपने दोष विचारकर उन्हे कम करनेके लिये प्रवृत्तिशील न हुआ जाये तब तक सत्पुरुषका कहा हुआ मार्ग परिणाम पा है । इस बातपर मुमुक्षु जीवको विशेष विचार करना योग्य है ।
सत्सगनैष्ठिक श्री सोभाग, श्री सायला ।
निवृत्तिक्षेत्रमे रुकने सम्बन्धी विचारको अधिक स्पष्टतासे सूचित करना सम्भव होगा तो करूँगा । अभी यह बात मात्र प्रसंगसे आपको सूचित करनेके लिये लिखी है, जो विचार अस्पष्ट होनेसे दूसरे मुमुक्षु भाइयोको भी बताना योग्य नही है । आपको सूचित करने मे भी कोई राग हेतु नही है । यही विनती । आ० स्व० यथायोग्य ।
बबई, आषाढ़ वदी ७, रवि, १९५१
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ॐ नमो वीतरागाय
आपका और श्री लहेराभाईका लिखा पत्र मिला है ।
इस भरतक्षेत्रमे इस कालमे केवलज्ञान सम्भव है या नही ? इत्यादि प्रश्न लिखे थे, उसके उत्तरमे आपके तथा श्री लहेराभाईके विचार, प्राप्त पत्रसे विशेषत जाने हैं। इन प्रश्नोपर आपको, लहेराभाईको