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श्रीमद् राजचन्द्र
शक्ति विचार करना योग्य है । प्रश्न-समाधानादि लिखनेका उदय भी अल्प रहनेसे प्रवृत्ति नही हो सकती। तथा व्यापाररूप उदयका वेदन करनेमे विशेष ध्यान रखनेसे भी उसका इस कालमे बहुत भार कम हो सके, ऐसे विचारसे भी दूसरे प्रकार उसके साथ आते जानकर भी मद प्रवृत्ति होती है। पूर्वकथितके अनुसार लौटते समय प्राय समागम होनेका ध्यान रखूगा ।
एक विनती यहाँ करने योग्य है कि इस आत्मामे आपको गुणाभिव्यक्ति भासमान होती हो, और उससे अतरमे भक्ति रहती हो तो उस भक्तिका यथायोग्य विचारकर जैसे आपको योग्य लगे वैसे करने योग्य है, परन्तु इस आत्माके सम्बन्धमे अभी वाहर किसी प्रसगकी चर्चा होने देना योग्य नहीं है, क्योकि अविरतिरूप उदय होनेसे गुणाभिव्यक्ति हो तो भी लोगोको भासमान होना कठिन पड़े, और उससे विराधना होनेका कुछ भी हेतु हो जाय, तथा पूर्व महापुरुषके अनुक्रमका खण्डन करने जैसा प्रवर्तन इस आत्मासे कुछ भी हुआ समझा जाय ।
इस पत्रपर यथाशक्ति विचार कीजियेगा और आपके समागमवासो जो कोई मुमुक्षुभाई हो, उनका अभी नही, प्रसग प्रसगसे अर्थात् जिस समय उन्हे उपकारक हो सके वैसा सम्भव हो तब इस बातका ओर ध्यान खीचियेगा । यही विनती।
६२२ . बम्बई, आषाढ वदी ३०, १९५१ 'अनतानुबधी' का जो 'दूसरा प्रकार लिखा है, तत्सम्बन्धी विशेषार्थ निम्नलिखितसे जानियेगा :
· उदयसे अथवा उदासभावसयुक्त मदपरिणतबुद्धिसे भोगादिमें प्रवृत्ति हो, तब तक ज्ञानीकी आज्ञाका ठुकराकर प्रवृत्ति हुई ऐसा नही कहा जा सकता, परन्तु जहाँ भोगादिमे तीन तन्मयतासे प्रवृत्ति हो वहाँ ज्ञानोको आज्ञाकी कोई अंकुशताका सम्भव नही है, निर्भयतासे भोगप्रवृत्ति सम्भवित है, जो निर्वस परिणाम कहे हैं। वैसे परिणाम रहे, वहाँ भी 'अनतानुवधी' सम्भवित है। तथा 'मैं समझता हूँ', 'मुझे बाधा नहीं है', ऐसीकी ऐसी भ्रातिमे रहे और 'भोगसे निवृत्ति करना योग्य है' और फिर कुछ भी पुरुषार्थ करे तो वैसा हो सकने योग्य होनेपर भी मिथ्याज्ञानसे ज्ञानदशा मानकर भोगादिमे प्रवृत्ति करे, वहाँ भी 'अनतानुवधी' सम्भवित है।
जाग्रत अवस्थामे ज्यो ज्यो उपयोगकी शुद्धता हो त्यो त्यो स्वप्नदशाकी परिक्षीणता सम्भव है।
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बम्बई, श्रावण सुदी २, बुध, १९५१ आज चिट्ठी मिली है। ववाणिया जाते हुए तथा वहाँसे लौटते हुए सायला होकर जानेके बारेमें विशेषतासे लिखा है, इस विषयमे क्या लिखना ? उसका विचार एकदम स्पष्ट निश्चयमे नही आ सका है। तो भी स्पष्टास्पष्ट जो कुछ यह पत्र लिखते समय ध्यानमे आया वह लिखा है।
, आपकी आजकी चिट्ठीमे हमारे लिखे हुए जिस पत्रकी आपने पहुँच लिखी है, उस पत्रपर अधिक. विचार करना योग्य था, और ऐसा लगता था कि आप उसपर विचार करेंगे तो सायला आनेके सम्बन्ध अभी हमारी इच्छानुसार रखेंगे। परन्तु आपके चित्तमे यह विचार विशेषत' आनेसे पहले यह चिट्ठी लिखी गयी है। फिर आपके चित्तमे जाते समय समागमकी विशेष इच्छा रहती है, तो उस इच्छाका उपेक्षा करनेकी मेरी योग्यता नही है । ऐसे किसी प्रकारमे आपकी आसातना जैसा हो जाय, यह डर रहता है। अभी आपकी इच्छानुसार समागमके लिये आप, श्री डुगर तथा श्री लहेराभाईका आनेका विचार हा १. देखें आक ६१३