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श्रीमद् राजचन्द्र
गुण समुदायसे भिन्न ऐसा कुछ गुणीका स्वरूप होना योग्य है क्या ? इस प्रश्नका आप सब यदि विचार कर सकें तो कीजियेगा । श्री डुंगरको तो जरूर विचार करना योग्य है ।
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कुछ उपाधियोगके व्यवसायसे तथा प्रश्नादि लिखने इत्यादिकी वृत्ति मन्द होनेसे अभी सविस्तर पत्र लिखनेमे कम प्रवृत्ति होती होगी, तो भी हो सके तो यहाँ स्थिति है तब तकमे कुछ विशेष प्रश्नोत्तर इत्यादिसे युक्त पत्र लिखनेका हो तो लिखियेगा ।
सहजात्मभावनासे यथा०
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ववाणिया, श्रावण वदी ११, शुक्र, १९५१
आत्मार्थी श्री सोभाग तथा श्री डुगर, श्री सायला ।
यहाँसे प्रसंगोपात्त लिखे हुए जो चार प्रश्नोके उत्तर लिखे उसे पढा है | प्रथमके दो प्रश्नोका उत्तर सक्षेपमे है, तथापि यथायोग्य है । तीसरे प्रश्नका उत्तर सामान्यत. ठीक है, तथापि विशेष सूक्ष्म आलोचनसे उस प्रश्नका उत्तर लिखने योग्य है । वह तीसरा प्रश्न इस प्रकार है- 'गुणके समुदायसे भिन्न गुणीका स्वरूप होना योग्य है क्या ? अर्थात् सभी गुणोका समुदाय वही गुणो अर्थात् द्रव्य ? अथवा उस गुणके समुदायके आधारभूत ऐसे भी किसी दूसरे द्रव्यका अस्तित्व है ?" उसके उत्तरमे ऐसा लिखा कि-- आत्मा गुणी है। उसके गुण ज्ञानदर्शन आदि भिन्न हैं । यो गुणी और गुणकी विवक्षा की है, तथापि वहाँ विशेष विवक्षा करना योग्य है । ज्ञानदर्शन आदि गुणसे भिन्न ऐसा बाकीका आत्मत्व क्या है ?" यह प्रश्न है । इसलिये यथाशक्ति इस प्रश्नका परिशीलन करना योग्य है ।
चौथा प्रश्न 'केवलज्ञान इस कालमे होने योग्य है क्या ?" उसका उत्तर ऐसा लिखा कि- 'प्रमाणसे देखते हुए वह होने योग्य है ।' यह उत्तर भी सक्षेपमे है, जिसका बहुत विचार करना योग्य है । इस चौथे प्रश्नका विशेष विचार करनेके लिये उसमे इतना विशेष ग्रहण कीजियेगा कि - ' जिस प्रकारसे जैनागममे केवलज्ञान माना है, अथवा कहा है, वह केवलज्ञानका स्वरूप यथातथ्य कहा है ऐसा भासमान होता है या नही ? और वैसा केवलज्ञानका स्वरूप हो ऐसा भासमान होता हो तो वह स्वरूप इस कालमे भी प्रगट होने योग्य है या नही ? किंवा जो जैनागम कहता है उसके कहनेका हेतु कुछ भिन्न है, और केवलज्ञानका स्वरूप किसी दूसरे प्रकारसे कहने योग्य है तथा समझने योग्य है ?' इस बातपर यथाशक्ति अनुप्रेक्षा करना योग्य है। तथा तीसरा प्रश्न है वह भी अनेक प्रकारसे विचारणीय है । विशेष अनुप्रेक्षा करके, इन दोनो प्रश्नोका उत्तर लिख सकें तो लिखियेगा । प्रथमके दो प्रश्न हैं, उनके उत्तर सक्षेपमे लिखे हैं, वे विशेषतासे लिखे जा सके तो वे भी लिखियेगा । आपने पाँच प्रश्न लिखे है ।' उनमेसे तीन प्रश्नोंके उत्तर यहाँ संक्षेपमे लिखे हैं—
प्रथम प्रश्न - 'जातिस्मरणज्ञानवाला पिछला भव किस तरह देखता है ?" उसके उत्तरका विचार इस प्रकार कीजियेगा -
बचपनमे कोई गॉव, वस्तु आदि देखे हो, और बड़े होनेपर किसी प्रसंगपर उस गाँव आदिका आत्मामे स्मरण होता है, उस वक्त उस गॉव आदिका आत्मामे जिस प्रकार भान होता है, उस प्रकार जातिस्मरणज्ञानवालेको पूर्वभवका भान होता है । कदाचित् यहाँ यह प्रश्न होगा कि, 'पूर्वभवमे अनुभव किये हुए देहादिका इस भवमे ऊपर कहे अनुसार भान हो, इस बातको यथातथ्य मानें तो भी पूर्वभवमे अनुभव किये हुए देहादि अथवा कोई देवलोकादि निवासस्थानके जो अनुभव किये हो, उन अनुभवोकी स्मृति हुई है, और वे अनुभव यथातथ्य हुए है, ऐसा किस आधारसे समझा जाय ?" तो इस प्रश्नका समा