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२८ यो वर्ष आप दोनो अथवा आप कब आये, इस विषयमे मनमे कुछ विचार आता है, जिससे अभी यहाँ कुछ विचार सूचित करने तक आनेमे विलम्ब करेगे तो आपत्ति नही है।
परपरिणतिके कार्य करनेका प्रसग रहे और स्वपरिणतिमे स्थिति रखे रहना, यह श्री आनदघनजी जो चौदहवें जिनेंद्रकी सेवा कही है उससे भी विशेष दुष्कर है।
ज्ञानीपुरुषको जबसे नौ बाडसे विशुद्ध ब्रह्मचर्यकी दशा रहती है तबसे जो सयमसुख प्रगट होत है वह अवर्णनीय है। उपदेशमार्ग भी उस सुखके प्रगट होनेपर प्ररूपण करने योग्य है। श्री डुगरक अत्यन्त भवितसे प्रणाम।
आ० स्व० प्रणाम
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बबई, जेठ सुदी १०, रवि, १९५
परम स्नेही श्री सोभागके प्रति, श्री सायला।।
तीन दिन पहिले आपका लिखा पत्र मिला है। यहाँ आनेके विचारका उत्तर मिलने तक उपशा किया है ऐसा लिखा, उसे पढा है । उत्तर मिलने तक आनेका विचार बंद रखनेके बारेमे यहाँसे लिखा थ उसके मुख्य कारण इस प्रकार हैं
यहाँ आपका आनेका विचार रहता है, उसमे एक हेतु समागम-लाभका है और दूसरा अनिच्छ नीय हेतु कुछ उपाधिके सयोगके कारण व्यापारके प्रसगसे किसीको मिलनेका है। जिस पर विचार करते हुए अभी आनेका विचार रोका जाये तो भी आपत्ति नही है ऐसा लगा, इसलिये इस प्रकारसे लिख था । समागमयोग प्रायः यहाँसे एक या डेढ महीने बाद कुछ निवृत्ति मिलना सम्भव है तब उस तरफ होना सम्भव है। और उपाधिके लिये अभी त्रबक आदि प्रयासमे हैं। तो आपका उस प्रसगसे आनेका विशेष कारण जैसा तुरतमे नही है। हमारा उस तरफ आनेका योग होनेमे अधिक समय जाने जैसा दिखायी देगा तो फिर आपको एक चक्कर लगा जानेका कहनेका चित्त है। इस विषयमे जो आपके ध्यानमे आये सो लिखियेगा।
कई बड़े पुरुषोके सिद्धियोग सम्बन्धी शास्त्रमे बात आती है, तथा लोककथामे वैसी बाते सुनी जाती है । उसके लिये आपको सशय रहता है, उसका सक्षेपमे उत्तर इस प्रकार हे -
अष्ट महासिद्धि आदि जो जो सिद्धियाँ कही हैं, ॐ आदि मंत्रयोग कहे है, वे सब सच्चे हैं। आत्मैश्वर्यकी तुलनामे ये सब तुच्छ है। जहाँ आत्मस्थिरता है, वहाँ सर्व प्रकारके सिद्धियोग रहते हैं। इस कालमे वैसे पुरुष दिखायी नही देते, इससे उनकी अप्रतोति होनेका कारण है, परन्तु वर्तमानमे किसी जीवमे ही वैसी स्थिरता देखनेमे आती है । बहुतसे जीवोमे सत्त्वकी न्यूनता रहती है, और उस कारणसे वैसे चमत्कारादि दिखायी नहीं देते, परन्तु उनका अस्तित्त्व नही है, ऐसा नहीं है। आपको शका रहती है, यह आश्चर्य लगता है। जिसे आत्मप्रतीति उत्पन्न हो उसे सहज हो इस वातकी नि शकता होती है, क्योकि आत्मामे जो सामर्थ्य है, उस सामर्थ्यके सामने इस सिद्धिलब्धिकी कुछ भी विशेषता नहीं है।
ऐसे प्रश्न आप कभी कभी लिखते हैं, उसका क्या कारण है, वह लिखियेगा। इस प्रकारके प्रश्न विचारवानको क्यो हो ? श्री डुगरको नमस्कार । कुछ ज्ञानवार्ता लिखियेगा।