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श्रीमद् राजचन्द्र
तो फिर पुन. विषमता होना सम्भव नही हैं। यदि अव्यक्तरूपसे जीवमे विषमता हो और व्यक्तरूपसे समता हो इस तरह प्रलयको स्वीकार करें तो भी देहादि सम्बन्धके विना विषमता किस आश्रयसे रहे ? देहादि सम्बन्ध मानें तो सबकी एकेन्द्रियता माननेका प्रसंग आये, और वैमा माननेसे तो बिना कारण दूसरी गतियोका अस्वीकार समझा जाये अर्थात् ऊँची गतिके जीवको यदि वैसे परिणामका प्रसंग मिटने आया हो, वह प्राप्त होनेका प्रसग आये इत्यादि बहुतसे विचार उठते है। सर्व जीवआश्रयी प्रलयका सम्भव नही है। २४ प्र०-अनपढको भक्तिसे ही मोक्ष मिल सकता है क्या ?
उ०-भक्ति ज्ञानका हेतु है । ज्ञान मोक्षका हेतु है। जिसे अक्षरज्ञान न हो उसे अनपढ कहा हो, तो उसे भक्ति प्राप्त होना असंभवित है, ऐसा कुछ है नही | जीव मात्र ज्ञानस्वभावी है । भक्तिके बलसे ज्ञान निर्मल होता है। निर्मल ज्ञान मोक्षका हेतु होता है । सम्पूर्ण ज्ञानकी अभिव्यक्ति हुए बिना सर्वथा मोक्ष हो, ऐसा मुझे नहीं लगता, और जहाँ सम्पूर्ण ज्ञान हो वहाँ सर्व भाषाज्ञान समा जाय, ऐसा कहनेकी भी आवश्यकता नही है । भाषाज्ञान मोक्षका हेतु है तथा वह जिसे न हो उसे आत्मज्ञान न हो. ऐसा कुछ नियम सम्भव नही है।
२५ प्र०-(१) कृष्णावतार और रामावतार होनेकी बात क्या सच्ची है ? यदि ऐसा हो तो वे क्या थे ? वे साक्षात् ईश्वर थे या उसके अश थे ? (२) उन्हे माननेसे मोक्ष मिलता है क्या ?
उ०-(१) दोनो महात्मा पुरुष थे, ऐसा तो मुझे भी निश्चय है। आत्मा होनेसे वे ईश्वर थे। उनके सब आवरण दूर हो गये हो तो उनका सर्वथा मोक्ष भी माननेमे विवाद नही है। कोई जीव ईश्वर का अश है, ऐसा मुझे नहीं लगता, क्योकि उसके विरोधी हजारो प्रमाण देखनेमे आते हैं । जीवको ईश्वर का अश माननेसे बध-मोक्ष सब व्यर्थ हो जाते है क्योकि ईश्वर ही अज्ञानादिका कर्ता हुआ, और अज्ञान आदिका जो कर्त्ता हो उसे फिर सहज ही अनैश्वर्यता प्राप्त होती है और ऐश्वर्य खो बैठता है, अर्थात् जीवका स्वामी होने जाते हुए ईश्वरको उलटे हानि सहन करनेका प्रसग आये वैसा है। तथा जीवको ईश्वरका अश माननेके बाद पुरुषार्थ करना किस तरह योग्य लगे ? क्योकि वह स्वय तो कोई कर्ता-हर्ता सिद्ध नही हो सकता । इत्यादि विरोधसे किसी जीवको ईश्वरके अशरूपसे स्वीकार करनेकी भी मेरी बुद्धि नहीं होती। तो फिर श्रीकृष्ण या राम जैसे महात्माओको वैसे योगमे माननेकी बुद्धि कैसे हो ? वे दोनो अव्यक्त ईश्वर थे, ऐसा माननेमे बाधा नही है । तथापि उनमे सम्पूर्ण ऐश्वयं प्रगट हुआ था या नहीं, यह बात विचारणीय है।
(२) उन्हे माननेसे मोक्ष मिलता है क्या? इसका उत्तर सहज है । जीवके सर्व रागद्वेष और अज्ञान का अभाव अर्थात् उनसे छूटना ही मोक्ष है। वह जिनके उपदेशसे हो सके उन्हे मानकर और उनका परमार्थस्वरूप विचारकर, स्वात्मामे भी वैसी ही निष्ठा होकर उसी महात्माके आत्माके आकारसे (स्वरूपसे) प्रतिष्ठान हो, तब मोक्ष होना सम्भव है। बाकी अन्य उपासना सर्वथा मोक्षका हेतु नही है, उसके साधनका हेतु होती है, वह भी निश्चयसे हो ही ऐसा कहना योग्य नही है ।
२६ प्र०-ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर कौन थे ? । उ०-सृष्टिके हेतुरूप तीन गुणोको मानकर, उनके आश्रयसे उन्हे यह रूप दिया हो तो यह बात मेल खा सकती है तथा वैसे अन्य कारणोसे उन ब्रह्मादिका स्वरूप समझमे आता है। परन्तु पुराणोमे जिस प्रकारका उनका स्वरूप कहा है, उस प्रकारका स्वरूप है, ऐसा माननेमे मेरा विशेष झुकाव नहीं है। क्योकि उनमे बहुतसे रूपक उपदेशके लिये कहे हो, ऐसा भी लगता है । तथापि हमे भी उनका