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२५ वाँ वर्ष
३४१ 'निश्चय' मे अकर्त्ता, 'व्यवहार' मे कर्त्ता, इत्यादि जो व्याख्यान 'समयसार मे है, वह विचारणीय है, तथापि जिसके वोधसम्बन्धी दोष निवृत्त हुए हैं, ऐसे ज्ञानीसे वह प्रकार समझना योग्य है ।
समझने योग्य तो जो है वह स्वरूप, जिसे निर्विकल्पता प्राप्त हुई है, ऐसे ज्ञानीसे - उनके आश्रयसे जीवके दोष गलित होकर, प्राप्त होता है, समझमे आता है ।
छ मास सपूर्ण हुए जिसे परमार्थके प्रति एक भी विकल्प उत्पन्न नही हुआ ऐसे श्री को नमस्कार है ।
बबई, जेठ वदी ३०, शुक्र, १९४८
हृदयरूप श्री सुभाग्य,
जिसकी प्राप्ति के बाद अनन्तकालकी याचकता मिटकर सर्व कालके लिये अयाचकता प्राप्त होती है, ऐसा जो कोई हो तो उसे तरनतारन जानते हैं, उसे भजें ।
मोक्ष तो इस कालमे भी प्राप्त हो सकता है, अथवा प्राप्त होता है । परन्तु मुक्तिका दान देनेवाले पुरुषकी प्राप्ति परम दुर्लभ है, अर्थात् मोक्ष दुर्लभ नही, दाता दुर्लभ है ।
उपाधियोगकी अधिकता रहती है । बलवान क्लेश जैसा उपाधियोग देनेकी 'हरीच्छा' होगी, अब इस स्थिति वह जैसे उदय मे आये वैसे वेदन करना योग्य समझते है
ससारसे कटाले हुए तो बहुत समय हो गया है, तथापि ससारका प्रसग अभी विरामको प्राप्त नही होता, यह एक प्रकारका बड़ा 'क्लेश' रहता है ।
आपके सत्सगकी अत्यन्त रुचि रहती है, तथापि उस प्रसगकी प्राप्ति अभी तो 'निर्बल' होकर श्री 'हरि'को सौंपते हैं ।
हमे तो कुछ करनेकी बुद्धि नही होती, और लिखनेकी बुद्धि नही होती । कुछ कुछ वाणीसे प्रवृत्ति करते हैं, उसकी भी बुद्धि नही होती, मात्र आत्मरूप मौनस्थिति और उस सम्बन्धी प्रसग, इस विषयमे बुद्धि रहती है ओर प्रसग तो उससे अन्य प्रकारके रहते है ।
ऐसी ही 'ईश्वरेच्छा' होगी । यह समझकर, जैसे स्थिति प्राप्त होती है, वैसे ही योग्य समझकहते हैं ।
'बुद्धि तो मोक्षके विषयमे भी स्पृहावाली नही है । परन्तु प्रसग यह रहता है । सत्सगमे रुचि रखनेवाले डुंगरको हमारा प्रणाम प्राप्त हो ।..
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""वननी मारी कोयल" ऐसी एक गुर्जरादि देशकी कहावत इस प्रसगमे योग्य है । ॐ शांति. शातिः शाति
नमस्कार पहुँचे ।
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बबई, जेठ, १९४८
प्रभुभक्ति जैसे हो वैसे तत्पर रहना यह मुझे मोक्षका घुरधर मार्ग लगा है । चाहे तो मनसे भी स्थिरतासे बैठकर प्रभुभक्ति अवश्य करना योग्य है ।
मनकी स्थिरता होने का मुख्य उपाय अभी तो प्रभुभक्ति समझें। आगे भी वह, और वैसा ही है, तथापि स्थूलरूप से इसे लिखकर जताना अधिक योग्य लगता है ।
'उत्तराध्ययनसूत्र' के दूसरे इच्छित अध्ययन पढियेगा, बत्तीसवें अध्ययनको शुरूकी चौबीस गाथाओका मनन करियेगा ।
१. वनकी मारी कोयल ।