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श्रीमद् राजचन्द्र अभी दिखायी नही देता कि अभी इसमेसे छूटकर चले जाना हो तो किसीका अपराध किया न समझा जाय । छूटनेका प्रयत्न करत हुए किसीके मुख्य अपराधमे आ जानेका स्पष्ट सम्भव दिखायी देता है, और यह वर्तमान अवस्या उपाधिरहित होनेके लिये अत्यत योग्य है, प्रारब्धकी व्यवस्था ऐसी बाँधी होगी।
लि. रायचन्दके प्रणाम ।
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बबई, चैत्र सुदो ९, १९४९ मुमुक्षुभाई सुखलाल छगनलाल, वीरमगाम ।
____ कल्याणकी अभिलापावाला एक पत्र गत वर्षमे मिला था, उसी अर्थका दूसरा पत्र थोडे दिन हुए मिला है।
केशवलालका आपको वहाँ समागम होता है यह श्रेयस्कर योग है। ___ आरभ, परिग्रह, असत्सग आदि कल्याणके प्रतिबधक कारणोका यथासम्भव कम परिचय हो तथा उनमे उदासीनता प्राप्त हो, यह विचार अभी मुख्यत रखने योग्य है।
बबई, चैत्र सुदी ९, १९४९ मुमुक्षुभाई श्री मनसुख देवशी, लीमडी।
___ अभी उस तरफ हुए श्रावको आदिके समागम सम्बन्धी विवरण पढा है। उस प्रसगमे जीवको रुचि या अरुचि उदयमे नही आयी, उसे श्रेयस्कर कारण जानकर, उसका अनुसरण करके निरन्तर प्रवर्तन करनेका परिचय करना योग्य है, और उस असत्सगका परिचय जैसे कम हो वैसे उसकी अनुकपाकी इच्छा करके रहना योग्य है। जैसे हो वैसे सत्सगके योगकी इच्छा करना और अपने दोष देखना योग्य है।
बबई, चैत्र वदी १, रवि, १९४९ *धार तरवारनी सोहली, दोहलो चौदमा जिनतणी चरणसेवा; धार पर नाचता देख बाजीगरा, सेवना धार पर रहे न देवा ।
-श्री आनदघन-अनतजिनस्तवन मार्गको ऐसी अत्यन्त दुष्करता किस कारणसे कही है ? यह विचार करने योग्य है।
आत्मप्रणाम
बबई, चैत्र वदी ८, रवि, १९४९ जिसे ससार सम्बन्धी कारणके पदार्थोंकी प्राप्ति सुलभतासे निरन्तर हुआ करे और बन्धन न हो, ऐसा कोई पुरुप हो, तो उसे तीर्थङ्कर या तीर्थङ्कर जैसा मानते हैं, परन्तु प्रायः ऐसी सुलभ प्राप्तिके योगसे जीवको अल्पकालमे संसारसे अत्यन्त वैराग्य नही होता, और स्पष्ट आत्मज्ञानका उदय नही होता, ऐसा जानकर जो कुछ उस सुलभ प्राप्तिको हानि करनेवाला योग होता है उसे उपकारकारक जानकर सुखसे रहना योग्य है।
*भावार्य-तलवारकी धारपर चलना तो आसान है, परन्तु चौदहवें तीर्थङ्कर श्री अनन्तनाथजीके चरणोकी सेवा करना मुश्किल है । वाजीगर तलवारकी धारपर नाचते हुए देखे जाते हैं, परन्तु प्रभुके चरणोकी सेवारूप धारपर तो देवगण भी नहीं चल सकते।