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श्रीमद राजचन्द्र हम ब्रह्म, आप ब्रह्म, वे ब्रह्म इसमे संशय नही। जो ऐसा जानता है वह ब्रह्म, इसमे सशय नही । जो ऐसा नही जानता वह भी ब्रह्म, इसमे संशय नही। जीव ब्रह्म है, इसमे सशय नही। जड ब्रह्म है, इसमे सशय नही। ब्रह्म जीवरूप हुआ है, इसमे सशय नही। ब्रह्म जडरूप हुआ है, इसमे सशय नही। '
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सर्व ब्रह्म है, इसमे सशय नही ।
ॐ ब्रह्म। सर्व ब्रह्म, सर्व ब्रह्म। ॐ शातिः शातिः शाति ।
पन्ना २७
सर्व हरि है, इसमे सशय नही।
पन्ना २८
यह सब आनन्दरूप ही है, आनन्द ही है, इसमे सशय नही।
पन्ना २९
हरि ही सर्वरूप हुआ है।
-हरिका अंश हूँ। । १ उसका परमदासत्व करने योग्य हूँ, ऐसा दृढ निश्चय करना, इसे हम विवेक कहते हैं । २ ऐसे दृढ निश्चयको उस हरिकी माया आकुल करनेवाली लगती है, वहां धैर्य रखना। ३ वह सब रहनेके लिये उस परम रूप हरिका आश्रय अगोकार करना अर्थात् 'मैं' के
स्थानपर हरिको स्थापित करके मै को दासत्व देना । ४ ऐसे ईश्वराश्रयी होकर प्रवृत्ति करें, ऐसा हमारा निश्चय आपको रुचे।
.. केवल पद .. .
.. । कक्का केवळ पद उपदेश। कहीशं प्रणमी देव रमेश ॥ १ कोई भी वस्तु किसी भी भावसे परिणत होती है। २. जो किसी भी भावसे परिणत नही, वह अवस्तु है। ३ कोई भी वस्तु केवल परभावमे समवतरित नही होती। ४ जिससे, जो सर्वथा मुक्त हो सके वह वह न था, ऐसा जानते हैं।
पन्ना ३०
पन्ना ३१
१ भावार्थ -रमेशदेवको प्रणाम करके हम कहते हैं कि कक्का केवल पदका उपदेश देता है।