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२४ वाँ वर्ष
२७७ ले तो जीव ज्ञान प्राप्त कर सकता है। यह बात हमे बहुत प्रिय है। और आपके समागममे अब इसकी विशेष चर्चा करेंगे। लिखा नही जाता।
___ स्वर्ग, नरक आदिकी प्रतीतिका उपाय योगमार्ग है। उसमे भी जिसे दूरदर्शिताकी सिद्धि प्राप्त होती है, वह उसकी प्रतीतिके लिये योग्य है। सर्वकाल यह प्रतीति प्राणीके लिये दुर्लभ हो पड़ी है। ज्ञानमार्गमे इस विशेष बातका वर्णन नही है, परन्तु यह सब हैं अवश्य ।
___ मोक्ष जितने स्थानमे बताया है वह सत्य है । कमसे, भ्रातिसे अथवा मायासे छूटना यह मोक्ष है ।। यह मोक्षकी शब्द व्याख्या है।
जीव एक भी है और अनेक भी है। अधिष्ठानसे एक है। जीवरूपसे अनेक है। इतना स्पष्टीकरण । लिखा है, तथापि इसे बहुत अधूरा रखा है। क्योकि लिखते हुए कोई वैसे शब्द नही मिले। परन्तु आप . समझ सकेगे ऐसी मुझे नि शकता है।
तीर्थंकरदेवके लिये सख्त शब्द लिखे गये हैं, इसलिये उन्हे नमस्कार ।
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बंबई, फागुन वदी १, १९४७ "एक देखिये, जानिये'' इस दोहेके विषयमे आपने लिखा, तो यह दोहा हमने आपकी नि.शकताकी दृढताके लिये नही लिखा था, परन्तु स्वभावतः यह दोहा प्रशस्त लगनेसे लिख भेजा था। ऐसा लय तो गोपागनाओमे था। श्रीमद्भागवतमे महात्मा व्यासने वासुदेव भगवानके प्रति गोपियोकी प्रेमभक्तिका वर्णन किया है वह परमालादक और आश्चर्यकारक है।
__ "नारद भक्तिसूत्र" नामका एक छोटा शिक्षाशास्त्र महर्षि नारदजीका रचा हुआ है, उसमे प्रेमभक्तिका सर्वोत्कृष्ट प्रतिपादन किया है।
उदासीनता कम होनेके लिये आपने दो तीन दिन यहाँ दर्शन देनेकी कृपा प्रदर्शित की, परन्तु वह उदासीनता दो तीन दिनके दर्शनलाभसे दूर होनेवाली नहीं है । परमार्थ उदासीनता है। ईश्वर निरन्तरका दर्शनलाभ दे ऐसा करें तो पधारना, नही तो अभी नही ।
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बबई, फागुन वदी ३, शनि, १९४७ आज आपका जन्मकुण्डलीसहित पत्र मिला। जन्मकुण्डली सम्बन्धी उत्तर अभी नहीं मिल सकता, भक्ति सम्बन्धी प्रश्नोके उत्तर यथाप्रसग लिखूगा । हमने आपको जिस सविस्तर पत्रमे 'अधिष्ठान'के विषयमे लिखा था वह समागममे समझा जा सकता है।
'अधिष्ठान'का अर्थ यह है कि जिसमेसे वस्तु उत्पन्न हुई, जिसमे वह स्थिर रही और जिसमे वह लयको प्राप्त हुई। इस व्याख्याके अनुसार "जगतका अविष्ठान"का अर्थ समझियेगा।
जैनदर्शनमे चैतन्यको सर्वव्यापक नही कहा है। इस विषयमे आपके ध्यानमे जो कुछ हो सो लिखियेगा।
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ववई, फागुन वदी ८, वुध, १९४७ श्रीमद्भागवत परमभक्तिरूप ही है । इसमे जो जो वर्णन किया हे वह सब लक्ष्यरूपको सूचित करनेके लिये है।
१ एक देखिये जानिये, रमी रहिये इक ठोर ।
समल विमल न विचारिये, यह सिद्धि नहि और ॥ -समयमार नाटक, जीवद्वार ।