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श्रीमद राजचन्द्र आपने हमारे लिये जन्म धारण किया होगा, ऐसा लगता है। आप हमारे अथाह उपकारी हैं । आपने हमे अपनी इच्छाका सुख दिया है, इसके लिये हम नमस्कारके सिवाय दूसरा क्या वदला दें?
परन्तु हमे लगता है कि हरि हमारे हाथसे आपको पराभक्ति दिलायेंगे, हरिके स्वरूपका ज्ञान करायेंगे, और इसे ही हम अपना वडा भाग्योदय मानेगे।
हमारा चित्त तो बहुत हरिमय रहता है परन्तु सग सव कलियुगके रहे हैं। मायाके प्रसंगमे रात दिन रहना होता है, इसलिये पूर्ण हरिमय चित्त रह सकना दुर्लभ होता है, और तब तक हमारे चित्तका उद्वेग नही मिटेगा।
हम ऐसा समझते हैं कि खभातवासी योग्यतावाले जीव है, परतु हरिकी इच्छा अभी थोडा विलब करनेकी दिखायी देती है। आपने दोहे इत्यादि लिख भेजे यह अच्छा किया। हम तो अभी किसीकी सम्भाल नही ले सकते । अशक्ति बहुत आ गयी है, क्योकि चित्त अभी बाह्य विषयमे नही जाता ।
लि० ईश्वरार्पण।
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ववई, श्रावण सुदी ९, गुरु, १९४७ आपने नथुरामजीको पुस्तकोके विपयमे तथा उनके बारेमे लिखा, वह मालूम हुआ। अभी कुछ ऐसा जाननेमे चित्त नही है । उनको एक दो पुस्तकें छपी हैं, उन्हे मैने पढा है ।
चमत्कार बताकर योगको सिद्ध करना, यह योगीका लक्षण नही है। सर्वोत्तम योगी तो वह है कि जो सर्व प्रकारको स्पृहासे रहित होकर सत्यमे केवल अनन्य निष्ठासे सर्वथा 'सत्' का ही आचरण करता है, और जिसे जगत विस्मृत हो गया है । हम यही चाहते है ।
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बंबई, श्रावण सुदी ९, गुरु, १९४७ पत्र पहुंचा।
आपके गाँवसे (खभातसे) पाँच-सात कोसपर क्या कोई ऐसा गाँव है कि जहाँ अज्ञातरूपसे रहना हो तो अनुकूल आये? जहाँ जल, वनस्पति और सप्टिरचना ठीक हो, ऐसा कोई स्थल यदि ध्यानमे हो तो लिखें।
जैनके पर्यंपणसे पहले और श्रावण वदी १ के बाद यहाँसे कुछ समयके लिये निवृत्त होनेकी इच्छा है।
जहाँ हमे लोग धर्मके सम्बन्धसे भी पहचानते हो ऐसे गाँवमे अभी तो हमने प्रवृत्ति मानी है, जिससे अभी खभात आनेका विचार सम्भव नही है।
अभी कुछ समयके लिये यह निवृत्ति लेना चाहता हूँ। सर्व कालके लिये (आयुपर्यंत) जब तक निवृत्ति प्राप्त करनेका प्रसग न आया हो तब तक धर्मसंबधसे भी प्रगटमे आनेकी इच्छा नही रहती।
जहाँ मात्र निर्विकारतासे (प्रवृत्ति रहित) रहा जाये, और वहाँ जरूरत जितने (व्यवहारकी प्रवृत्ति देखे ।) दो एक मनुष्य हो इतना बहुत है। क्रमपूर्वक आपका जो कुछ समागम रखना उचित होगा, वह रखेंगे। अधिक जजाल नही चाहिये । उपर्युक्त बातके लिये साधारण व्यवस्था करना । ऐसा नही होना चाहिये कि यह बात अधिक फैल जाये।
___ भवितव्यताके योगसे अभी यदि मिलना हुआ तो भक्ति और विनयके विषयमे सुज्ञ त्रिभोवनने जो पत्रमे पूछा है उसका समाधान करूंगा।
आपके अपने भी जहाँ अधिक (हो सके तो एक भी नही) परिचित न हो ऐसे स्थानके लिये व्यवस्था हो तो कृपा मानेंगे।
लि. समाधि