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श्रीमद राजचन्द्र
तब तक उपर्युक्त तोन कारण सर्वथा दूर नही होते, और तब तक 'सत्' का यथार्थ कारण प्राप्त भी नही होता। ऐसा होनेसे आपको मेरा समागम होनेपर भी बहुत व्यावहारिक और लोकलज्जायुक्त बात करनेका प्रसग रहेगा, और उससे मुझे कटाला आता है । आप चाहे जिससे भी मेरा समागम होने के बाद इस प्रकारकी वातमे फँसें, इसे मैंने योग्य नही माना है ।
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ववाणिया कार्तिक वदी १, १९४८
जो धर्मजवासी हैं, उन्हे यद्यपि सम्यग्ज्ञानकी प्राप्ति नही है, तथापि मार्गानुसारी जीन होने से वे समागम करने योग्य हैं। उनके आश्रयमे रहनेवाले मुमुक्षुओ की भक्ति, विनयादिका व्यवहार, वासनाशून्यता ये देखकर अनुसरण करने योग्य है । आपका जो कुलधर्म है, उसके कुछ व्यवहारका विचार करने से उपर्युक्त मुमुक्षुओका व्यवहार आदि ' उनके मन, वचन और कायाकी प्रवृत्ति, सरलता? के लिये समागम करने योग्य है। किसी भी प्रकारका दर्शन हो उसे महा पुरुषोने सम्यग्ज्ञान माना है ऐसा नही समझना है । पदार्थका यथार्थ बोध प्राप्त हो उसे सम्यग्ज्ञान माना गया है ।
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धर्मज जिनका निवास है, वे अभी उस भूमिकामे नही आये हैं।' उन्हे अमुक तेजोमयादिका दर्शन है । तथापि वह यथार्थ बोधपूर्वक नहीं है। दर्शनादिकी अपेक्षा यथार्थ बोध श्रेष्ठ पदार्थ है । यह बात जतानेका हेतु यह है कि आप किसी भी प्रकारकी कल्पनासे निर्णय करने से निवृत्त हो जाये ।
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ऊपर जो कल्पना शब्दका प्रयोग किया गया है वह इस अर्थ मे है कि - "हमने आपको उस समागमकी सम्मति दी जिससे वे समागमी 'वस्तुज्ञान' के देते, हैं, वैसी ही हमारी मान्यता भी है, अर्थात् जिसे इसलिये उनके समागमसे आपको उस ज्ञानका, वो
सम्बन्धमे जो कुछ प्ररूपण, करते, है, अथवा उपदेश हम 'सत्' कहते हैं वह, परन्तु हम अभी मौन रहते है प्राप्त कराना चाहते हैं ।" ܺ -
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श्री सुभाग्य प्रेमसमाधिमे रहते हैं ।
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मोरवी, कार्तिक वदी ७, रवि, १९४८
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अप्रगत सत् ।
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आणंद, मगसिर सुदी २, गुरु, १९४८
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ॐ
ऐसा जो परमसत्य उसका हम ध्यान करते हैं ।
• भगवानको सर्व समर्पण किये विना इस कालमे जीवका देहाभिमान मिटना सम्भव नही है । इसलिये हम सनातन धर्मरूप परम सत्यका निरन्तर ध्यान करते हैं । जो सत्यका 'ध्यान करता है वह सत्य हो जाता है।
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do the ३०८ ~, बंबई, मगसिर सुदी १४, मंगल, १९४८ ॐ संत्
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श्री सहज समाधि
यहाँ समाधि है।' स्मृति रहती है, तथापि निरुपायता है। असगवृत्ति होनेसे अणुमात्र उपाधि सहन हो सके ऐसी दशा नहीं है, तो भी सहन करते हैं। सत्सगी' 'पर्वत' के नामसे जिनका नाम है उन्हें यथायोग्य ।
१. पत्र फटा हुआ होनेसे यहाँसे अक्षर उड़ गये हैं ।
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