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वाणिया, आसोज वदी १०, सोम, १९४७ परमार्थके विषयमे मनुष्योका पत्रव्यवहार अधिक रहता है, और हमे वह अनुकूल नही आता । जिससे बहुतसे उत्तर तो लिखनेमे ही नही आते ऐसी हरीच्छा है, और हमे यह बात प्रिय भी है ।
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एक दशासे प्रवृत्ति है, और यह दशा अभी बहुत समय तक रहेगी। तब तक उदयानुसार प्रवर्तन योग्य माना है | इसलिये- किसी भी प्रसगपर पत्रादिकी पहुँच मिलनेमे, विलब हो जाये अथवा न भेजी जाये, अथवा कुछ न लिखा जा सके तो वह शोचनीय नही है, ऐसा निश्चय करके यहाँका पत्रप्रसग रखिये ।
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श्रीमद राजचन्द्र
लिखा है ।
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२९१ ॐ
पूर्णकाम चित्तको नमोनमः
आत्मा ब्रह्मसमाधिमे है । मन वनमे हैं । 'एक दूसरे के आभास से अनुक्रमसे देह कुछ किया करती है, इस स्थिति सविस्तर और सतोषरूप आप दोनोके पत्रोका उत्तर कैसे लिखना, इसे आप कहे ।'
धर्मंजके सविस्तर पत्रकी किसी-किसी बात के विषयमे सविस्तर लिखता, परन्तु चित्त लिखनेमे नही.. रहता, इसलिये लिखा नही है ।
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त्रिभुवनादिककी इच्छा के अनुसार आनंदमे समागमका योग हो ऐसा करनेकी इच्छा' है; और तब उस पत्रसम्बन्धी कुछ पूछना हो तो पूछिये ।
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धर्मजमे जिनका निवास है उन मुमुक्षुओकी दशा और प्रथा आपको स्मरणमे रखने योग्य है, अनुसरण करने योग्य है।
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वाणिया, आसोज वदी १२, गुरु, १९४७
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‘मगनलाल और त्रिभुवनके पिताजी कैसी प्रवृत्तिमे हैं, सो लिखें । यह पत्र लिखते हुए सूझनेसे
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आप सब परमार्थं विषयक कैसी प्रवृत्तिमे रहते हैं, सो लिखियेगा ।
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आप हमारे वचनादिकी इच्छासे पत्र की राह देखते होगे, परन्तु उपर्युक्त कारणोको पढकर ऐसा समझ कि आपने बहुतसे पत्र पढे हैं ।'
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,किसी एक न बताये हुए प्रसग के विषयमे सविस्तर पत्र लिखनेकी इच्छा थी, उसका भी निरोध करना पड़ा है।' उस प्रसगको गाभीयवशात् इतने वर्ष तक हृदयमे ही रखा है । अब चाहते हैं कि उसे कहे, तथापि आपकी सत्संगतिका अवसर आनेपर कहे तो कहे । लिखना सम्भव नही लगता ।
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एक समय भी विरह न हो, इस तरह सत्संगमे ही रहना चाहते है । परन्तु यह तो हरीच्छावश हैं । कलियुगमे सत्संगकी परम हानि हो गयी है। अधकार व्याप्त है । और सत्सगंकी अपूर्वताका जीवको यथार्थं भान नही होता |
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वाणिया, आसोज वदी १२, १९४७ कुटुम्बादिक सगके विषयमे लिखा सो ठीक है, उसमे भी इस कालमे ऐसे संगमे जीवका समभाव मे परिणमन होना महा विकट है, और जो इतना होते हुए भी समभावमे परिणमित होते, हैं - उन्हे हम निकटभवी जीव मानते हैं । F
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आजीविकाके प्रपचके विषयमे वारवार स्मृति न हो इसलिये नौकरी करनी पड़े, यह
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