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श्रीमद् राजचन्द्र
२८९ । ववाणिया, आसोज वदी १०, सोम, १९४७ परमार्थक विषयमे मनुष्योका पत्रव्यवहार अधिक रहता है, और हमे वह अनुकूल नही आता। जिससे बहुतसे उत्तर तो लिखनेमे ही नही आते; ऐसी हरीच्छा है, और हमे यह बात प्रिय भी है।
.२९० .:. :: .. - एक दशासे प्रवृत्ति है, और यह दशा अभी बहुत समय तक रहेगी। तब तक उदयानुसार प्रवर्तन योग्य माना है । इसलिये किसी भी प्रसगपर पत्रादिकी पहुँच मिलनेमे, विलब हो जाये अथवा न भेजी जाये, अथवा कुछ न लिखा जा सके तो वह शोचनीय नही है, ऐसा निश्चय करके यहॉका पत्रप्रसग रखिये।
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ववाणिया, आसोज वदी १२, गुरु, १९४७
... पूर्णकाम चित्तको नमोनमः, -- . .. ' ' - आत्मा ब्रह्मसमाधिमे है । मन वनमे है । एक दूसरेके आभाससे अनुक्रमसे देह कुछ क्रिया करती है, इस स्थितिमे सविस्तर और संतोषरूप आप दोनोके पत्रोका उत्तर कैसे लिखना, इसे आप कहे।
धर्मजके सविस्तर पत्रकी किसी-किसी वातके विषयमे सविस्तर लिखता, परन्तु चित्त लिखनेमे नही रहता, इसलिये लिखा नही है।। M . , " ..
' __. त्रिभुवनादिककी इच्छाके अनुसार आणंदमे समागमका योग हों ऐसा करनेकी इच्छा है, और तब, उस पत्रसम्बन्धी कुछ पूछना हो तो पूछिये ।'
धर्मजमे जिनका निवास है उन मुमुक्षुओकी दशा और प्रथा आपको स्मरणमे रखने योग्य है, अनुसरण करने योग्य है। । - - मगनलाल और त्रिभुवनके पिताजी कैसी प्रवृत्तिमे है, सो लिखें। यह पत्र लिखते हुए सूझनेसे लिखा है। आप सब परमार्थ विषयक कैसी प्रवृत्तिमे रहते हैं, सो लिखियेगा।
---.. - आप हमारे वचनादिकी इच्छासे पत्रकी राह देखते होगे, परन्तु उपर्युक्त कारणोको पढकर ऐसा समझें कि आपने बहुतसे पत्र पढें हैं।
__ किसी एक न बताये हुए प्रसगके विषयमे सविस्तर पत्र लिखनेकी इच्छा थी, उसका भी निरोध करना पड़ा है। उस प्रसगको गाभीर्यवंशात् इतने वर्ष तक हृदयमे ही रखा है। अब चाहते हैं कि उसे कहे, तथापि आपकी सत्सगतिका अवसर आनेपर कहे तो कहै । लिखना सम्भव नही लगता। ..
एक समय भी विरह न हो, इस तरह सत्सगमे ही रहना चाहते है । परन्तु यह तो हरीच्छावश है।
कलियुगमे सत्संगकी परम हानि हो गयी है । अधकार व्याप्त है । और सत्सगकी अपूर्वताको जीवको यथार्थ भान नहीं होता।
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ववाणिया, आसोज वदी १२, १९४७ - कुटुम्बादिक संगके विषयमे लिखा सो ठीक है, उसमे भी इस कालमे ऐसे सगमे जीवका समभावमे परिणमन होना महा विकट है, और जो इतना होते हुए भी, समभावमे परिणमित होते हैं उन्हे हम निकटभवी जीव मानते हैं।'
आजीविकाके प्रपचके विषयमे वारवार स्मृति न हो इसलिये नौकरी करनी पड़े, यह हितकारक