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२४ वा वर्ष
२६७ सत्सगकी यहाँ कमी है, और विकट वासमे निवास है। हरीच्छासे धूमने-फिरनेकी वृत्ति है। इसलिये कुछ खेद तो नही है, परन्तु भेदका प्रकाश नही किया जा सकता, यह चिंतना निरतर रहा करती है।
आज भूधर एक पत्र दे गये है। तथा आपका एक पत्र सीधा मिला है।
मणिको भेजी हुई 'वचनावलीमे आपकी प्रसन्नतासे हमारी प्रसन्नताको उत्तेजन मिला है। इसमे सतका अद्भुत मार्ग प्रगट किया है। यदि मणि एक ही वृत्तिसे इन वाक्योका आराधन करेगा, और उसी पुरुषकी आज्ञामे लीन रहेगा तो अनन्त कालसे प्राप्त हुआ परिभ्रमण मिट जायेगा । मणि मायाका मोह विशेष रखता है, कि जो मार्गप्राप्तिमे बडा प्रतिबध गिना गया है। इसलिये ऐसी वृत्तिको धीरे-धीरे कम करनेके लिये मणिसे मेरी विनती है।
आपको जो पूर्णपदोपदेशक अखरावट या पद भेजनेकी इच्छा है, वह किस ढालमे अथवा रागमे हो इसके लिये आपको जो योग्य लगे वह लिखें।
अनेकानेक प्रकारसे मनन करनेपर हमारा यह दृढ निश्चय है कि भक्ति सर्वोपरि मार्ग है, और वह सत्पुरुषके चरणोमे रहकर हो तो क्षणभरमे मोक्ष प्राप्त करा दे ऐसा साधन है।
विशेष कुछ नही लिखा जाता । परमानद है, परन्तु असत्सग है अर्थात् सत्सग नही है। विशेष आपकी कृपादृष्टि, बस यही ।
,, - वि० आज्ञाकारीके दडवत्
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वबई, माघ वदी ३, १९४७ सुज्ञ मेहता चत्रभुज,
जिस मार्गसे जीवका कल्याण हो उसका आराधन करना 'श्रेयस्कर' है, ऐसा वारवार कहा है। फिर भी यहाँ इस बातका स्मरण कराता हूँ।
____ अभी मझसे कुछ भी लिखा नही गया है, उसका उद्देश इतना ही है कि ससारी सम्बन्ध अनन्त बार हुआ है, और जो मिथ्या है उस मार्गसे प्रीति बढानेकी इच्छा नहीं है। परमार्थ मार्गमे प्रेम उत्पन्न होना यही धर्म है। उसका आराधन करें।
वि० रायचदके यथायोग्य ।
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वंबई, माघ वदी ४, १९४७
ॐ सत्स्व रूप सुज्ञ भाई,
आज आपका एक पत्र मिला। इससे पूर्व तीन दिन पहले एक सविस्तर पत्र मिला था। उसके लिये कुछ असतोष नही हुआ। विकल्प न कीजियेगा।
आपने मेरे पत्रके उत्तरमे जो सविस्तर पत्र लिखा है, वह पत्र आपने विकल्पपूर्वक नही लिखा। मेरा वह लिखा हुआ पत्र मुख्यत मुनिपर था । क्योकि उनकी मांग निरन्तर रहती थी।
यहाँ परमानद है। आप और दूसरे भाई सत्के आराधनका प्रयत्न करें। हमारा यथायोग्य मानें। और भाई त्रिभोवन आदिसे कहे।
वि० रायचदके यथायोग्य ।
१. देखें आक २००
२ मणिलाल, श्री सोभाग्यभाईके पुत्र
३. देखें आक १९८