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२४ वा वर्ष
२५१ विशेष क्या लिखें? हरीच्छा जो होगी वह सुखदायक ही होगी। एकाध दिन रुकिये । अधिक नही, फिरसे मिलिये । मिलनेकी हाँ बताइये। हरीच्छा सुखदायक है । ज्ञानावतार सम्बन्धी वे पहले बात कहे तो इस पत्रमे बतायी हुई बातको विशेषतः दृढ कीजिये।
भावार्थ ध्यानमे रखिये । इसके अनुसार चाहे जिस प्रसगमे इसमेसे कोई बात उनसे करनेकी आपको स्वतत्रता है। ' 'उममे ज्ञानावतारके लिये अधिक प्रेम पैदा हो ऐसा प्रयत्न कीजिये । हरीच्छा सुखदायक है।
१६८ बबई, कार्तिक सुदी १३, सोम, १९४७ "एनं स्वप्ने जो दर्शन पामे रे, तेनं मन न चढ़े बीजे भामे रे। थाय कृष्णनो लेश प्रसग रे, तेने न गमे संसारनो संग रे॥
हसतां रमतां प्रगट हरि देखें रे, मारु जीव्यं सफळ तव लेखं रे। मुक्तानन्दनो नाथ विहारी रे, ओधा जीवनदोरी अमारी रे॥
आपका कृपापत्र कल मिला । परमानन्द और परमोपकार हुआ। __ ग्यारहवें गुणस्थानसे गिरा हुआ जीव कम-से-कम तीन और अधिक-से-अधिक पन्द्रह भव करे, ऐसा अनुभव होता है। ग्यारहवाँ गुणस्थान ऐसा है कि वहाँ प्रकृतियाँ उपशम भावमे होनेसे मन, वचन और कायाके योग प्रबल शुभ भावमे रहते हैं, इससे साताका बध होता है, और यह साता बहुत करके पांच अनुत्तर विमानकी ही होती है। .
आज्ञाकारी
बबई, कार्तिक सुदी १३, सोम, १९४७ कल आपका एक पत्र मिला । प्रसगात् कोई प्रश्न आनेपर अधिक लिखना हो सकेगा।
चि त्रिभोवनदासकी अभिलापा प्रसगोपात्त समझी जा सकी तो है ही, तथापि अभिलाषाके लिये पुरुषार्थ करनेकी बात नही बतायी, जो इस समय बता रहा हूँ।
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बबई, कार्तिक सुदी १४, १९४७ परम पूज्यश्री,३
आज आपका एक पत्र भूधर दे गया। इस पत्रका उत्तर लिखनेसे पहले कुछ प्रेमभक्ति सहित लिखना चाहता हूँ।
आत्माने ज्ञान पा लिया यह तो नि सशय है, ग्रन्थिभेद हुआ यह तीनो कालमे सत्य बात हे । सव . ज्ञानियोने भी इस बातका स्वीकार किया है। अब हमे अन्तिम निर्विकल्प समाधि प्राप्त करना बाकी है, .
१ भावार्थ-यदि कोई स्वप्नमे भी इसका दर्शन पाता है तो उसका मन दूसरे मोहमें नही पडता । जिसे कृष्णका लेश मात्र भी प्रसग हो जाता है, उसे फिर ससारका सग अच्छा नहीं लगता।
२ भावार्थ-मैं जब हँसते-खेलते हुए हरिको प्रत्यक्ष देवू तव अपने जीवनको सफल समझू । हे उद्धव । मुक्तानन्दके नाय और बिहारी श्रीकृष्ण हमारे जीवनके आधार है। ३ यह पत्र श्री सोभागभाईको लिखा है।