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२३ वो वर्ष
२३३ आपको दुःखी करनेका कारण न हो इसलिये मैंने आगमनका परिचय कम रखा है, इसके लिये क्षमा कीजियेगा । इत्यादि जैसे योग्य लगे वैसे करके आत्मनिवृत्ति कीजियेगा । अभी इतना ही। .. ....
..वि० रायचदके यथायोग्य
१४६, .:: - ववाणिया, आसोज-सुदी ५, शनि, १९४६ 'ऊचनीचनो अंतर नथी। समज्या ते पाम्या सद्गति ॥ ___ तीर्थंकरदेवने राग करनेका निषेध किया है, अर्थात् जब तक राग है तब तक मोक्ष नही होता। तब फिर इसके प्रति राग आप सबके लिये हितकारक कैसे होगा? - लिखनेवाला अव्यक्तदशा
___- १४७ ववाणिया, आसोज सुदी ६, रवि, १९४६ सुज्ञ भाई खीमजी,
आज्ञाके प्रति अनुग्रहदशक सतोषप्रद पत्र मिला। • आज्ञामे हो एकतान हुए बिना परमार्थके मार्गकी प्राप्ति बहुत ही असुलभ है। एकतान होना भी बहुत ही असुलभ है।
इसके लिये आप क्या उपाय करेंगे? अथवा क्या सोचा है ? अधिक क्या ? अभी इतना भी बहुत है।
वि० रायचन्दके यथायोग्य ।
१४८ - ववाणिया, आसोज सुदी १०, गुरु, १९४६ पाँचेक दिन पहले पत्र मिला, जिस पत्रमे लक्ष्मी आदिकी विचित्र दशाका वर्णन किया है। ऐसे अनेक प्रकारके परित्यागयुक्त विचारोको, पलट पलटकर जब आत्मा एकत्व बुद्धिको पाकर महात्माके सगकी आराधना करेगा, अथवा स्वय किसी पूर्वके स्मरणको प्राप्त करेगा तो इच्छितः, सिद्धिको प्राप्त करेगा। यह नि सशय है । विस्तारपूर्वक पत्र लिख सकूँ ऐसी दशा नही रहती। ।, वि० रायचन्दके यथोचित ।
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ववाणिया, आसोज सुदी १०, गुरु, १९४६
१४९- धर्मध्यान, विद्याभ्यास इत्यादिकी वृद्धि करें।
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ववाणिया, आसोज, १९४६ यह मैं तुझे मौतका औषध देता हूँ । उपयोग करनेमे भूल मत करना।
तुझे कौन प्रिय है ? मुझे पहचाननेवाला। । ऐसा क्यो करते है ? अभी देर है । क्या होनेवाला है ? . . हे कर्म | तुझे निश्चित आज्ञा करता हूँ कि नीति और नेकोपर मेरा पैर मत रखवाना ।
आसोज, १९४६
तीन प्रकारके वीर्यका विधान किया है-... -
(१) महावीर्य (२) मध्यवीयं..... (३) अल्पवीर्य । -- महावीर्यका तीन प्रकारसे विधान किया है--
(१) सात्त्विक (२) राजसी (३) तामसी। १ भावार्थ-ऊँचनीचका कोई अतर नही है । जो समझे वे सद्गतिको प्राप्त हुए ।