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१७ वाँ वर्ष
१३३ प्र.-अभी प्रवर्तमान शासन किसका है ? उ०-श्रमण भगवान महावीरका । प्र०-महावीरसे पहले जैनदर्शन था ? उ०-हाँ। प्र०-उसे किसने उत्पन्न किया था ? उ०-उनसे पहलेके तीर्थंकरोने । प्र०-उनके और महावीरके उपदेशमे कोई भिन्नता है क्या?
उ०-तत्त्वस्वरूपसे एक ही है । पात्रको लेकर उपदेश होनेसे और कुछ कालभेद होनेसे सामान्य मनुष्यको भिन्नता अवश्य मालूम होती है, परन्तु न्यायसे देखते हुए यह भिन्नता नही है ।
प्र०-उनका मुख्य उपदेश क्या है ?
उ.-आत्माको तारो, आत्माकी अनत शक्तियोका प्रकाश करो और उसे कर्मरूप अनंत दु.खसे मुक्त करो।
प्र०-इसके लिये उन्होने कौनसे साधन बताये हैं ?
उ०-व्यवहारनयसे सदेव, सद्धर्म और सद्गुरुका स्वरूप जानना, सद्देवका गुणगान करना, त्रिविध धर्मका आचरण करना और निर्ग्रन्थ गुरुसे धर्मका बोध पाना ।
प्र०-त्रिविध धर्म कौनसा? उ०-सम्यग्ज्ञानरूप, सम्यग्दर्शनरूप और सम्यक्चारित्ररूप ।
शिक्षापाठ १०५ : विविध प्रश्न-भाग ४ प्र०-ऐसा जैनदर्शन जब सर्वोत्तम है तब सभी आत्मा इसके वोधको क्यो नही मानते? उ०-कर्मको बहुलतासे, मिथ्यात्वके जमे हुए दलसे और सत्समागमके अभावसे । प्र०—जैनमुनियोंके मुख्य आचार क्या है ?
उ० –पाँच महाव्रत, दशविध यतिधर्म, सप्तदशविध सयम, दशविध वैयावृत्य, नवविध ब्रह्मचर्य, द्वादश प्रकारका तप, क्रोधादिक चार प्रकारके कषायका निग्रह, इनके अतिरिक्त ज्ञान, दर्शन और चारित्रका आराधन इत्यादि अनेक भेद है।
प्र०—जैनमुनियोके जैसे ही सन्यासियोके पांच याम है, बौद्धधर्ममे पाँच महाशील है। इसलिये इस आचारमे तो जैनमुनि, सन्यासी तथा बौद्धमुनि एक-से है न ?
उ.-नही। प्र०—क्यो नही?
उ.--उनके पाँच याम और पांच महाशील अपूर्ण है। महाव्रतके प्रतिभेद जैनमे अति सूक्ष्म हैं । उन दोनोंके स्थूल हैं।
प्र०-सूक्ष्मताके लिये कोई दृष्टान्त भी तो दो ।
उ०–दृष्टान्त प्रत्यक्ष ही है । पचयामी कदमूलादिक अभक्ष्य खाते हे, सुखशय्यामे सोते है, विविध प्रकारके वाहनो और पुष्पोका उपभोग करते हैं, केवल शीतल जलसे व्यवहार करते है, रात्रिमे भोजन करते है । इसमे होनेवाला असख्यात जतुओका विनाश, ब्रह्मचर्यका भग इत्यादिकी सूक्ष्मता वे नही जानते ।