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२२ या वर्ष
१८७ ७ किस तरह चले ? किस तरह खडा रहे ? किस तरह बैठे ? किस तरह सोये ? किस तरह भोजन करे ? किस तरह वोले ? तो वह पापकर्म न बाँधे ।
८ यतनासे चले, यतनासे खडा रहे, यतनासे बैठे, यतनासे सोये, यतनासे भोजन करे, यतनासे बोले, तो वह पापकर्म नही बाँधता ।
____९ जो सब जीवोको अपने आत्माके समान समझता है, जो सब जीवोको मन, वचन, कायासे सम्यक् प्रकारसे देखता है, जिसने आस्रवोके निरोधसे आत्माका दमन किया है, वह पापकर्म नही बाँधता।
१० 'पहले ज्ञान और फिर दया' इस सिद्धातमे सब सयमी स्थित है अर्थात् मानते है । अज्ञानी (सयममे) क्या करेगा यदि वह कल्याण या पापको नही जानता ?
११ श्रवण कर कल्याणको जानना चाहिये, पापको जानना चाहिये, दोनोको श्रवण कर जाननेके बाद जो श्रेय हो उसका सम्यक् प्रकारसे आचरण करना चाहिये ।
१२..जो जीव अर्थात् चैतन्यके स्वरूपको नही जानता, जो अजीव अर्थात् जडके स्वरूपको नही जानता, अथवा जो उन दोनोंके तत्त्वको नही जानता वह साधु सयमको बात कहाँसे जानेगा ? ___- १३ जो चैतन्यका स्वरूप जानता है, जो जडका स्वरूप जानता है और जो दोनोका स्वरूप जानता है, वही साधु सयमका स्वरूप जानता है ।
१४ जब जीव और अजीव इन दोनोको जानता है, तब सब जोवोकी बहुत प्रकारसे गति-आगतिको जानता है।
१५ जब सब जीवोकी बहुविध गति-आगतिको जानता है, तभी पुण्य, पाप, वध और मोक्षको जानता है।
१६ जब पुण्य, पाप, बध और मोक्षको जानता है, तब मनुष्यसम्बन्धी और देवसम्बन्धी भोगोकी इच्छासे निवृत्त होता है।
- १७ जब देव और मनुष्य सम्बन्धी भोगोंसे निवृत्त होता है, तब सब प्रकारसे वाह्य और अभ्यतर सयोगोका त्याग कर सकता है।
___ १८ जब बाह्य और अभ्यतर सयोगका त्याग करता है, तब द्रव्य और भावसे मुडित होकर मुनिकी दोक्षा लेता है।
१९ जब मडित होकर मुनिकी दीक्षा लेता है, तव उत्कृष्ट सवरकी प्राप्ति करता है और उत्तम धर्मका अनुभव करता है।
२० जब उत्कृष्ट सवरकी प्राप्ति करता है और उत्तम धर्ममय होता हे तव कर्मरूप रज, जो अबोधि-मिथ्याज्ञानजन्य कलुषरूपसे जीवको मलिन कर रही है, उसे दूर करता है।
२१ जब अबोधि-मिथ्याज्ञानजन्य कलुषसे उपार्जित कर्मरजको दूर करता है, तब सर्वव्यापी केवलज्ञान और केवलदर्शनको प्राप्त होता है।
२२ जब सर्वव्यापी केवलज्ञान और केवलदर्शनको प्राप्त होता है, तब नोरागी होकर वह केवली लोकालोकके स्वरूपको जानता है।
२३ जब नीरागी होकर केवली लोकालोकके स्वरूपको जानता है तब मन, वचन और कायाके योगका निरोध कर शैलेशी अवस्थाको प्राप्त होता है।
२४ जब योगका निरोधकर शैलेशी अवस्थाको प्राप्त होता है, तब सर्व कर्मक्षय करके निरजन होकर सिद्धि अर्थात् सिद्धगतिको प्राप्त हो जाता है।
(दशवैकालिक, अध्ययन ४, गाथा १ से २४)