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२३ वा वर्ष
२०९
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बबई,, कार्तिक, १९४६
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नवपदके ध्यानियोकी वृद्धि करनेकी मेरी अभिलाषा है।
बंबई, मगसिर सुदी ९, रवि, १९४६ सुज्ञश्री,
____आपने मेरे विषयमे जो जो प्रशसा प्रदर्शित की है, उस सबपर मैंने बहुत मनन किया है। वैसे गुण प्रकाशित हो ऐसी प्रवृत्ति करनेकी अभिलाषा है। परंतु वैसे गुण कुछ मुझमे प्रकाशित हुए हो, ऐसा मुझे नही लगता । मात्र रुचि उत्पन्न हुई है, ऐसा माने तो माना जा सकता है। हम यथासभव एक ही पदके इच्छुक होकर प्रयत्नशील होते हैं, वह यह कि "बँधे हुओको छुडाना ।" यह बधन जिससे छूटे उससे छोड़ लेना, यह सर्वमान्य है।
वि० रायचंदके प्रणाम ।
बबई, पौष, १९४६ इस प्रकारसे ते. समागम मुझे किसलिये हुआ? कहाँ तेरा गुप्त रहना हुआ था ?
सर्वगुणांश सम्यक्त्व है।
बबई, पौष सुदी ३, बुध, १९४६ कोई ऐसा योजक पुरुष (होना, चाहे तो ) धर्म, अर्थ, कामकी एकत्रता प्राय. एक पद्धतिएक समुदायमे, कितने ही उत्कृष्ट साधनोसे, साधारण श्रेणिमे लानेका प्रयत्न करे, और वह प्रयत्न अनासक्त भावसे~
१ धर्मका प्रथम साधन.। .. . २. फिर अर्थका साधन । ३ कामका साधन । ४. मोक्षका साधन ।
बबई, पौष सुदी ३, १९४६ सत्परुषोंने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थोंको प्राप्त करनेका उपदेश दिया है। ये चार पुरुषार्थ नीचेके दो प्रकारसे समझमे आये है1. - १. वस्तुके स्वभावको धर्म कहा गया है।
२. जडचैतन्यसम्बन्धी विचारोको अर्थ कहा है। - . ३. चित्तनिरोधको काम कहा है। ४: सवं बधनसे मुक्त होना मोक्ष हे।
। । इस प्रकार सर्वसगपरित्यागीकी अपेक्षासे घटित हो सकता है। सामान्यतः निम्न प्रकारसे है :
भी जो 'ससारमे अधोगतिमे गिरनेसे रोककर धारण कर रखता है वह धर्म है। अर्थ-वैभव, लक्ष्मी, उपजीवनमें सासारिक साधन |
काम-नियमितरूपसे स्त्री-सहवास करना काम है।
___ मोक्ष-सब बन्धनोंसे मुक्ति मोक्ष है। 'धर्म' को पहले रखनेका हेतु इतना ही है कि 'अर्थ' और 'काम' ऐसे होने चाहिये कि जिनका मल
'धर्म' हो।