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२२ वां वर्ष
१८९ १९ सुसमाधिवाले साधु मन, वचन और कायासे स्वयं 'पृथ्वीकायकी हिंसा नही करते, दूसरोसे नही करवाते और करनेवालोका अनुमोदन नही करते ।'
२० पृथ्वीकायकी हिंसा करते हुए तदाश्रित चक्षुगोचर और अचक्षुगोचर विविध त्रस और स्थावर प्राणियोकी हिंसा होती है।
२१ इसलिये दुर्गतिको बढानेवाले इस पृथ्वीकायके समारभरूप दोषका जीवनपर्यन्त त्याग करे।
२२. सुसमाधिवाले साधु मन, वचन और कायासे स्वय जलकायकी हिंसा नही करते, दूसरोंसे नही करवाते और करनेवालोका अनुमोदन नही करते ।।
२३ जलकायकी हिंसा करते हुए तदाश्रित चक्षुगोचर और अचक्षुगोचर विनिभ त्रस एव स्थावर प्राणियोकी हिंसा होती है।
२४ इसलिये जलकायका समारम्भ दुर्गतिको बढानेवाला दोष जानकर जीवनपर्यंत उसका त्याग करे।
२५ मुनि अग्नि जलानेकी इच्छा नहीं करते क्योकि वह जीवघातके लिये सबसे भयकर तीक्ष्ण शस्त्र है।
२६ पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर इन चार दिशाओमे और चार विदिशाओमे और ऊपर एव नीचेको दो दिशाओमे रहे हुए जीवोको यह अग्नि जलाकर भस्म कर देती है।
२७ यह अग्नि प्राणियोकी घातक है ऐसा निसशय माने, और ऐसा हे इसलिये साधु प्रकाश या तापनेके लिये अग्नि न जलाये। . .
२८ इसलिये दुर्गतिको बढानेवाले हिंसारूप दोषको जानकर साधु अग्निकायके समारभका जीवन
___ पर्यंत त्याग कर दे |* .
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(दशवकालिक सूत्र, अध्ययन ६,
६१ वाणिया, वैशाख सुदी ६, सोम, १९४५
सत्पुरुषोको नमस्कार आपके दर्शन मुझे यहाँ लगभग सवा मास पहले हुए थे । धर्म सम्बन्धी जो कुछ मौखिक चर्चा हुई थी वह आपको याद होगी ऐसा समझकर उस चर्चा सम्बन्धी कुछ विशेष बतानेकी आज्ञा नही लेता। धर्मसम्बन्धी माध्यस्थ, उच्च और अदभी विचारोंसे आप पर मेरी कुछ विशेष प्रशस्त अनुरक्तता हो जानेसे कभी कभी आध्यात्मिक शैली सम्बन्धी प्रश्न आपके समक्ष रखनेकी आज्ञा लेनेका आपको कष्ट देता हूँ, योग्य लगे तो आप अनुकूल होवे ।
____ मैं अर्थ या वयकी दृष्टिसे वृद्ध स्थितिवाला नही हूँ, तो भी कुछ ज्ञानवृद्धता प्राप्त करनेके लिये आप जैसोके सत्सगका, उनके विचारोका और सत्पुरुषकी चरणरजका सेवन करनेका अभिलाषी हूँ। मेरी यह बालवय विशेषतः इसी अभिलाषामे बीती है, इससे जो कुछ भी मेरी समझमे आया है, उसे दो शब्दोमे समयानुसार आप जैसोके समक्ष रखकर विशेष आत्महित कर सकूँ, यह प्रयाचना इस परसे करता है।
१ सातवां सयमस्थान २ आठवां सयम-स्थान ३ नौवां सयम स्थान * शेष सयम-स्थान निम्नलिखित है
१० वायुकायकी हिंसा नही करना । ११. वनस्पतिकायकी हिंसा नही करना। १२ यसकायको हिंसा नही करना। १३ अकल्पित वस्तुका त्याग । १४ गृहस्थक पात्रमे नही खाना । १५ गृहस्थको शय्यापर नही सोना। १६. गृहस्यके आसनपर नही बैठना । १७ स्नान नही करना । १८ शृङ्गार नहीं करना।