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२३ वो वर्ष
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बम्बई, वि० स० १९४६ समझकर अल्पभाषी होनेवालेको पश्चात्ताप करनेका अवसर कम ही सम्भव है।
हे नाथ । सातवे तमतमप्रभा नरककी वेदना मिली होती तो शायद मान्य करता, परतु जगतकी मोहिनी मान्य नहीं होती।
पूर्वके अशुभकर्मके उदय आनेपर वेदन करते हुए शोक करते है तो अब यह भी ध्यान रखे कि नये कर्मोको बाँधते हुए परिणाममे वैसे ही तो नही बँधते ?
आत्माको पहचानना हो तो आत्माका परिचयी होना और परवस्तुका त्यागी होना। जो जितना अपना पौद्गलिक बड़प्पन चाहते है वे उतने ही हलके होने सभव हैं। प्रशस्त पुरुषकी भक्ति करे, उसका स्मरण करें, गुणचिंतन करें।
स० १९४६ निस्पृह महात्माओको अभेदभावसे नमस्कार "जीवको परिभ्रमण करते हुए अनतकाल हुआ, फिर भी उसकी निवृत्ति क्यो नही होती, और वह क्या करनेसे हो ?' इस वाक्यमे अनेक अर्थ समाये हुए हैं। उनका विचार किये बिना या दंढ विश्वाससे व्यथित हुए बिना मार्गके अंशका अल्प भान नही होता । दूसरे सब विकल्प दूर करके इस एक ऊपर लिखे हुए सत्पुरुषोंके वचनामृतका वारवार विचार कर लें।
ससारमे रहना और मोक्ष होना कहना यह होना असुलभ है। मैत्री-सब जीवोके प्रति हितचिन्तन । प्रमोद-गुणी जीवके प्रति उल्लासपरिणाम । करुणा-कोई भी जीव जन्म-मरणसे मुक्त हो ऐसा प्रयत्न करना । मध्यस्थता-निर्गुणी जीवके प्रति मध्यस्थता ।
बबई, कार्तिक सुदी ७, गुरु, १९४६ 'अष्टक' और 'योगबिंदु' नामकी दो पुस्तकें आपकी दृष्टिसे निकल जानेके लिये मैं इसके साथ भेज रहा है। 'योगबिंद' का दूसरा पन्ना ढूंढनेपर मिल नही सका, तो भी बाकीका भाग समझा जा सकता है इसलिये यह पुस्तक भेज रहा हूँ। 'योगदृष्टिसमुच्चय' वादमे भेजूंगा । परमतत्त्वको सामान्य ज्ञानमे प्रस्तुत करनेकी हरिभद्राचार्यकी चमत्कृति स्तुत्य है। किसी स्थलमे खडन-भडनका भाग सापेक्ष होगा, उस ओर आपकी दृष्टि नही होनेसे मुझे आनन्द है।
अथसे इति तक अवलोकन करनेका समय निकालनेसे मेरे पर एक कृपा होगी। (जैनदर्शन ही मोक्षका अखण्ड उपदेश करनेवाला और वास्तविक तत्त्वमे श्रद्धा रखनेवाला दर्शन है । फिर भी कोई 'नास्तिक' के उपनामसे उसका पहले खण्डन कर गये हैं, यह यथार्थ नही हुआ, यह बात इस पुस्तक के पढनेसे प्राय आपको दृष्टिमे आ जायेगी।)
मैं आपको जैनसम्बन्धी कुछ भी अपना आग्रह नही बताता । और आत्मा जिस रूपमे हो उस रूपमे चाहे जिससे हो जाये इसके सिवाय दूसरी कोई मेरी अतरग अभिलाषा नही है, ऐसा कुछ कारणसे कहकर,
१. देखें आक १९५। २ देखें आक १५३ में भी यह वाक्य है।