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श्रीमद् राजचन्द्र
(२) १ उममे 'प्रथम स्थानमे महावीर देवने, सब जीवोके साथ सयमपूर्वक वरतना यही सुखद एव उत्तम अहिंसा है, ऐसा उपदेश दिया है।
२ संमारमे जितने त्रस और स्थावर प्राणी है, उन सबका साधु जाने-अनजाने स्वय वध न करे और दूसरेसे वध न कराये।
३ सब जीव जीना चाहते है, मरना नही चाहते । इसलिये निग्रंथ भयकर प्राणीवधका त्याग करे ।
४ साधु क्रोध या भयसे अपने लिये तथा दूसरोके लिये प्राणियोको पीडाकारी असत्य स्वय न बोले और न दूसरेसे बुलवाये ।
५ सब सत्पुरुषोने मृषावादका निपेध किया है। वह प्राणियोमे अविश्वास उत्पन्न करता है । इस लिये साधु उसका त्याग करे।
६ सचित्त या अचित्त पदार्थ-थोडे या बहुत, यहाँ तक कि दतशोधनके लिये एक तृण भी साधु बिना माँगे न ले।
७ स्वय अयाचित वस्तु न ले, तथा दूसरेसे न लिवावे, और अन्य लेनेवालेका अनुमोदन न करें। जो सयत पुरुप है वे ऐसा करते है।
८ महारौद्र, प्रमादके रहनेका स्थान तथा चारित्रका नाश करनेवाला ऐसे अब्रह्मचर्यका इस जगतमे मुनि सेवन न करे।
९ अधर्मका मूल, और महादोपोकी जन्मभमि ऐसे मैथुनके आलाप-प्रलापका निग्रंथ त्याग करे ।
१० ज्ञातपुत्र महावीरके वचनोमे प्रीति रखनेवाले मुनि सेधा और समुद्री नमक, तेल, घी, गुड़ आदि खाद्य-पदार्थ अपने पास रातमे नही रखे ।।
११ लोभसे तृणका भी स्पर्श न करे । जो ऐसे किसी पदार्थको रात्रिमे अपने पास रखना चाहे वह मुनि नही, किन्तु गृहस्थ है।
१२ जो वस्त्र, पात्र, कम्बल तथा रजोहरण है, उन्हे भी संयमकी रक्षाके लिये ही साधु धारण करे, नही तो त्याग करे।
१३ जो पदार्थ सयमकी रक्षाके लिये रखने पडते है उन्हे परिग्रह नही कहना, ऐसा छ कायके रक्षक ज्ञातपुत्रने कहा है, परन्तु मूर्छाको परिग्रह कहना ऐसा पूर्वमहर्षियोने कहा है।
१४. तत्त्वज्ञानको प्राप्त मनुष्य छ कायकी रक्षाके लिये मात्र उतना ही परिग्रह रखे, परन्तु ममत्व तो अपनी देहमे भी न रखे । ( यह देह मेरी नहीं है इसो उपयोगमे रहे । )
१५ आश्चर्य | निरतर तपश्चर्या और जिसको सर्व सर्वज्ञोने प्रशंसा की है ऐसे सयमको अविरोधी एव जीवननिर्वाहरूप एक बार भोजन लेना।
१६ स्थूल और सूक्ष्म प्रकारके बस और स्थावर जीव रात्रिमे दिखाई नही देते, इसलिये साधु उस समय आहार कैसे करे ?
१७ पानीसे भीगी हुई और वोज आदिसे युक्त पृथ्वीपर प्राणो विखरे पड़े हो, वहाँ दिनमे भी चलनेका निषेध है, तो फिर रातको मुनि भिक्षाके लिये कैसे जा सकता है ? "
१८ इन हिंसा आदि दोषोको देखकर ज्ञातपुत्र भगवानने ऐसा कहा है कि निग्रंथ साधु, रात्रिमे सभी प्रकारका आहार न करे।
३ तीसरा सयमस्थान ४ चौथा
१ अठारह सयमस्थानमें पहला सयमस्थान २ दुसरा सयमस्थान सयमस्थान ५ पांचवां सयमस्थान ६ छठा सयमस्थान ।