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२१ या वर्ष
१७७ बत्तीस ही भगवानके उपदिष्ट है, बाकी मिश्र हो गये हैं, और नियुक्ति इत्यादि भी वैसे ही है, इसलिये बत्तीस मानना चाहिये । इस मान्यताके लिये पहले अपनी समझमे आये हुए विचार बताता हूँ।
दूसरे पक्षकी उत्पत्तिको आज लगभग चार सौ वर्ष हुए हैं। वे जो बत्तीस सूत्र मानते है वे निम्नलिखित है :
११ अग, १२ उपाग, ४ मूल, ४ छेद, १ आवश्यक
अंतिम अनुरोध अब इस विषयको सक्षेपमे पूर्ण किया है। केवल प्रतिमासे ही धर्म है, ऐसा कहनेके लिये अथवा प्रतिमापूजनकी ही सिद्धिके लिये मैने इस लघु ग्रन्थमे कलम नही चलायी। प्रतिमाके विषयमे मुझे जो जो प्रमाण ज्ञात हुए थे ,उन्हे सक्षेपमे बतला दिया। शास्त्रविचक्षण और न्यायसपन्न पुरुषोको उसमे औचित्य अनौचित्य देखना है, और फिर जैसे सप्रमाण लगे वैसे प्रवृत्ति करना या प्ररूपण करना यह उनके आत्मापर आधार रखता है । इस पुस्तकको मै प्रसिद्ध न करता, क्योकि जिस मनुष्यने एक बार प्रतिमापूजनका विरोध किया हो, वही मनुष्य जब उसका समर्थन करे तब वह प्रथम पक्षवालोके लिये बहत खेद और कटाक्षका विषय हो जाता है। मैं मानता हूँ कि आप भी मेरे प्रति कुछ समय पहले ऐसी स्थितिमे आ गये थे । यदि उस समय इस पुस्तकको मैने प्रसिद्ध किया होता तो आपके अत करण अधिक दुःखी होते और दु.खी करनेका निमित्त मैं होता । इसलिये मैने वैसा नही किया। कुछ समय बीतनेपर मेरे अत - करणमे एक ऐसे विचारने जन्म लिया कि तेरे लिये उन लोगोको सक्लिष्ट विचार आते रहेगे, तूने जिन प्रमाणोसे इसे माना है वे भी केवल तेरे हृदयमे रह जायेंगे, इसलिये उन्हे सत्यतापूर्वक अवश्य. प्रसिद्ध किया जाये । इस विचारको मैंने अपना लिया । तब उसमेसे बहुत निर्मल विचारको प्रेरणा हुई, उसे सक्षेपमे बता देता हूँ। प्रतिमाको मानें इस आग्रहके लिये यह पुस्तक लिखनेका कोई हेतु नही है, तथा वे प्रतिमाको मानें इससे मैं कुछ धनवान होनेवाला नही हूँ, तत्संबंधी जो विचार मुझे आये थे ।
. (अपूर्ण प्राप्त)