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२१ वाँ वर्ष
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रा. रा चत्रभुज बेचरकी सेवामे सविनय विनती है कि
बंबई, कार्तिक सुदी ५, १९४४
मेरे सम्बन्धमे निरतर निश्चित रहियेगा । आपके लिये मै चिंतातुर रहूँगा ।
जैसे बने वैसे अपने भाइयोमे प्रीति, एकता और शातिकी वृद्धि करें। ऐसा करने से मुझपर बडी
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कृपा होगी ।
'समयका सदुपयोग करते रहियेगा, गाँव छोटा है तो भी । 'प्रवीणसागर' की व्यवस्था करके भिजवा दूँगा ।' निरतर सभी प्रकारसे निश्चिन्त रहियेगा ।
लि० रायचदके जिनाय नमः
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बंबई, पौष वदी १०, बुध, १९४४ 'विवाह सबधी उन्होने जो मिती निश्चित की है, उसके विषयमे उनका आग्रह है तो भले वह मिती निश्चित रहे ।
लक्ष्मीपर प्रीति न होनेपर भी किसी भी परार्थिक कार्यमे वह बहुत उपयोगी हो सकती है ऐसा लगने से मौन धारणकर यहाँ उसकी सुव्यवस्था करनेमे लगा हुआ था । उस व्यवस्थाका अभीष्ट परिणाम आनेमे बहुत समय नही था । परन्तु इनकी ओरका केवल ममत्वभाव शीघ्रता कराता है, जिससे उस सवको छोडकर वदी १३ या १४ (पौषकी) के दिन यहाँसे रवाना होता हूँ । परार्थं करते हुए कदाचित् लक्ष्मी अधता, बधिरता और मूकता दे देती है, इसलिये उसकी परवाह नही है ।
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हमारा अन्योन्य सम्बन्ध कोई कौटुम्बिक रिश्ता नही है, परन्तु दिलका रिश्ता है। परस्पर लोहचुम्वकका गुण प्राप्त हुआ है, यह प्रत्यक्ष है, तथापि मे तो इससे भी भिन्नरूपसे आपको हृदयरूप करना चाहता हूँ। जो विचार सारे सम्बन्धोको दूर कर, ससार योजनाको दूर कर तत्त्वविज्ञानरूपसे मुझे बताने हैं, और आपको स्वय उनका अनुकरण करना है । इतना सकेत बहुत सुखप्रद होनेपर भी मार्मिक रूपमे आत्मस्वरूपके विचारसे यहाँ लिखे देता हूँ ।
१ स १९४४ माघ सुदी १२ - गृहस्थाश्रममे प्रवेश ।