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प्र० -- कौन कौन-सी ?
उ०- ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, नाम, गोत्र, आयु और अन्तराय । प्र० - इन आठो कर्मोंकी सामान्य जानकारी दो ।
श्रीमद राजचन्द्र
उ०- ज्ञानावरणीय आत्माकी ज्ञानसम्बन्धी जो अनन्त शक्ति है उसका आच्छादन करता है । दर्शनावरणीय आत्माकी जो अनन्त दर्शनशक्ति है उसका आच्छादन करता है । वेदनीय अर्थात् देहनिमित्तमे साता असाता दो प्रकारके वेदनीय कर्मोंसे अव्याबाय सुखरूप आत्माकी शक्ति जिससे अवरुद्ध रहती है वह । मोहनीय कर्मसे आत्मचारित्ररूप शक्ति अवरुद्ध रही है । नामकर्मसे अमूर्तरूप दिव्य शक्ति अवरुद्ध रही है । गोत्रकर्मसे अटल अवगाहनारूप आत्मशक्ति अवरुद्ध रही है । आयुकर्मसे अक्षयस्थिति गुण अवरुद्ध रहा है | अन्तरायकर्मसे अनन्त दान, लाभ, वीर्य, भोग और उपभोगकी शक्ति अवरुद्ध रही है ।
प्र० - इन कर्मकि दूर होनेसे आत्मा कहाँ जाता है ?
उ०- - अनन्त और शाश्वत मोक्षमे ।
शिक्षापाठ १०३ : विविध प्रश्न- भाग २
प्र० - इस आत्माका मोक्ष कभी हुआ है ?
उ०- नहीं ।
प्र०-कारण
?
उ०
उ०- मोक्षप्राप्त आत्मा कर्ममलरहित है, इसलिये उसका पुनर्जन्म नही है ।
प्र० -- केवलीक लक्षण क्या हैं ?
उ०—चार घनघाती कर्माका क्षय करके और शेष चार कर्मोंको दुर्बल करके जो पुरुष त्रयोदश गुणस्थानमे विहार करता है ।
प्र० -- गुणस्थानक कितने ? उ०- चौदह । प्र०—– उनके नाम कहो ।
१ मिथ्यात्व गुणस्थानक २ मास्वादन गुणस्थानक ● मिश्र गुणस्थानक ४ अविरतिसम्यग्दृष्टि गुणस्थानक
५ देशविरति गुणस्थानक
६ प्रमत्तसंयत गुणस्थानक
७ अप्रमत्तसयत गुणस्थानक
८ अपूर्वकरण गुणस्थानक ९ अनिवृत्तिबादर गुणस्थानक १० सूक्ष्मसापराय गुणस्थानक ११ उपशातमोह गुणस्थानक
१२ क्षीणमोह गुणस्थानक
१३ सयोगीकेवली गुणस्थानक १४ अयोगकेवली गुणस्थानक
शिक्षापाठ १०४ : विविध प्रश्न- भाग ३
प्र० - केवली और तीर्थकर इन दोनोमे क्या अन्तर है ?
उ०- केवली और तीर्थंकर शक्तिमे समान है, परन्तु तीर्थकरने पूर्वमे तीर्थंकरनामकर्मका उपार्जन किया है, इसलिये वे विशेषरूपसे बारह गुण और अनेक अतिशय प्राप्त करते हैं ।
प्र० - तीर्थंकर पर्यटन करके किसलिये उपदेश देते है ? वे तो नीरागी है ।
उ०—पूर्वमे जो तीर्थंकरनामकर्म बाँधा है उसे वेदन करनेके लिये उन्हे अवश्य ऐसा करना
पड़ता है ।