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१७वाँ वर्ष
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सत्य - शुद्धसच्चिदानन्दस्वरूप "अनन्त सिद्धकी' भक्ति से तथा सर्वदूषणरहित, कर्ममलहीन, मुक्त, नीराग, सकलभयरहित, सर्वज्ञ, सर्वदर्शी जिनेश्वर भगवानकी भक्ति से आत्मशक्ति प्रकाशित होती है |
जिज्ञासु -- इनकी भक्ति करनेसे ये हमे मोक्ष देते हैं, ऐसा मानना ठीक है ?
सत्य - भाई जिज्ञासु | ये अनन्तज्ञानी भगवान तो नीराग और निर्विकार है । इन्हें स्तुति-निदाका हमे कुछ भी फल देनेका प्रयोजन नही है । हमारा आत्मा जो कर्मदलसे घिरा हुआ है, तथा अज्ञानी एव मोहाध बना हुआ है, उसे दूर करनेके लिये अनुपम पुरुषार्थकी आवश्यकता है । सर्व कर्मदलका क्षय करके अनन्त जीवन, अनन्त वीर्य, अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन से स्वस्वरूपमय हुए ' ऐसे जिनेश्वरोका स्वरूप आत्माकी निश्चयनयसे ऋद्धि होनेसे " यह पुरुषार्थता देता है, विकारसे विरक्त करता है, शान्ति और निर्जरा देता है । जैसे हाथमे तलवार लेनेसे शौर्य और भांगसे नशा उत्पन्न होता है, वैसे ही इस गुणचिन्तनसे आत्मा स्वस्वरूपानदकी श्रेणि पर चढता जाता है । हाथमे दर्पण लेनेसे जैसे मुखाकृतिका भान होता है वैसे ही सिद्ध या जिनेश्वर स्वरूपके चिन्तनरूप दर्पणसे आत्मस्वरूपका भान होता है ।
शिक्षापाठ १४ : जिनेश्वरकी भक्ति - भाग २
जिज्ञासु - आर्य सत्य | सिद्धस्वरूपको प्राप्त जिनेश्वर तो सभी पूज्य है, तो फिर नामसे भक्ति करनेकी कुछ जरूरत है ?
सत्य — हॉ, अवश्य है । अनन्त सिद्धस्वरूपका ध्यान करते हुए जो शुद्ध स्वरूपका विचार आता है वह तो कार्य है, परन्तु वे जिनसे उस स्वरूपको प्राप्त हुए वे कारण कौनसे हैं ? इसका विचार करते हुए उग्र तप, महान वैराग्य, अनन्त दया, महान ध्यान, इन सबका स्मरण होगा । अपने अर्हत तीर्थंकरपदमे जिस नामसे वे विहार करते थे उस नामसे उनके पवित्र आचार और पवित्र चरित्रका अन्त करण उदय होगा, जो उदय परिणाममे महा लाभदायक है । जैसे महावीरका पवित्र नामस्मरण करनेसे वे कौन थे ? कब हुए ? उन्होने किस प्रकारसे सिद्धि पायी ? इन चरित्रोकी स्मृति होगी, और इससे हमे वैराग्य, विवेक इत्यादिका उदय होगा ।
जिज्ञासु—– परन्तु ‘लोगस्स' मे तो चौबीस जिनेश्वरोके नाम सूचित किये हैं, इसका क्या हेतु है ? यह मुझे समझाइये |
सत्य — इस कालमे इस क्षेत्रमे जो चौबीस जिनेश्वर हुए, उनके नाम और चरित्रका स्मरण करनेसे शुद्ध तत्त्वका लाभ हो, यह इसका हेतु है । वैरागीका चरित्र वैराग्यका बोध देता है । अनन्त चौबीसीके अनन्त नाम सिद्धस्वरूपमे समग्रत आ जाते है । वर्तमानकालके चौबीस तीर्थकरोके नाम इस कालमे लेनेसे कालकी स्थितिका अति सूक्ष्म ज्ञान भी याद आ जाता है। जैसे इनके नाम इस कालमे लिये जाते हैं वैसे ही चोबीसी चौबीसीके नाम, काल और चौबीसी बदलने पर लिये जाते रहते है । इसलिये अमुक नाम लेना ऐसा कुछ निश्चित नही है, परन्तु उनके गुण और पुरुपार्थकी स्मृतिके लिये वर्तमान चौबोसीकी स्मृति करना, ऐसा तत्त्व निहित है । उनका जन्म, विहार, उपदेश यह सव नामनिक्षेपसे जाना जा सकता है । इससे हमारा आत्मा प्रकाश पाता है । सर्प जैसे वॉसुरीके नादसे जागृत होता हे वैसे ही आत्मा अपनी सत्य ऋद्धि सुनने से मोहनिद्रासे जागृत होता है ।
जिज्ञासु - आपने मुझे जिनश्वरकी भक्तिसम्बन्धी बहुत उत्तम कारण बताया । आधुनिक शिक्षासे जिनेश्वरकी भक्ति कुछ फलदायक नही है ऐसी मेरी आस्था हुई थी, वह नष्ट हो गयी है। जिनेश्वर भगवानकी भक्ति अवश्य करनी चाहिये, यह मैं मान्य रखता हूँ ।
द्वि० आ० पाठा०-१
सिद्ध भगवान की ।' २ 'अनत ज्ञान, अनत दर्शन, अनत चारित्र, अनत वीर्य, और स्वस्वरूपमय हुए ।' ३ ‘उन भगवानका स्मरण, चितन, ध्यान और भक्ति वे पुस्पार्थता देते है ।'