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श्रीमद् राजचन्द्र
शिक्षापाठ २३ : सत्य सामान्य कथनमे भी कहा जाता है कि सत्य इस "सृष्टिका आधार' है, अथवा सत्यके आधार पर यह २ सृष्टि टिकी है' | इस कथनसे यह शिक्षा मिलती है कि धर्म, नीति, राज और व्यवहार ये सब सत्य द्वारा चल रहे हैं, और ये चार न हो तो जगतका रूप कैसा भयंकर हो ? इसलिये सत्य "सृष्टिका आधार' है, यह कहना कुछ अतिशयोक्ति जैसा या न मानने योग्य नही है।
___ वसुराजाका एक शब्दका असत्य बोलना कितना दुखदायक हुआ था, "उसे तत्त्वविचार करनेके लिये मै यहाँ कहता हूँ।'
वसुराजा, नारद और पर्वत ये तीनो एक गुरुके पास विद्या पढ़े थे। पर्वत अध्यापकका पुत्र था। अध्यापक चल बसा ! इसलिये पर्वत अपनी मॉके साथ वसुराजाके राजमे आकर रहा था। एक रात उसकी माँ पासमे बैठी थो, और पर्वत तथा नारद शास्त्राभ्यास कर रहे थे। इस दौरानमे पर्वतने 'अजैर्यष्टव्यम्' ऐसा एक वाक्य कहा। तव नारदने कहा, "अजका अर्थ क्या है, पर्वत ?" पवतने कहा, "अज अर्थात् बकरा ।" नारद बोला, "हम तीनो जब तेरे पिताके पास पढते थे तब तेरे पिताने तो 'अज' का अर्थ तीन वर्षके 'व्रीहि' वताया था, और तू उलटा अर्थ क्यो करता है ?" इस प्रकार परस्पर वचनविवाद बढा । तब पर्वतने कहा, “वसुराजा हमे जो कहे वह सही।" यह वात नारदने भी मान ली और जो जीते उसके लिये अमुक शर्त की । पर्वतकी माँ जो पासमे बैठी थी उसने यह सब सुना । 'अज' अर्थात् 'बीहि' ऐसा उसे भी याद था । शर्तमे अपना पुत्र हार जायेगा इस भयसे पर्वतकी माँ रातको राजाके पास गयी और पूछा, 'राजन् | 'अज' का क्या अर्थ है ?" वसुराजाने सवधपूर्वक कहा, "अजका अर्थ 'व्रीहि' है।" तब पर्वतकी माँने राजासे कहा, "मेरे पुत्रने अजका अर्थ बकरा कह दिया है, इसलिये आपको उसका पक्ष लेना पडेगा। आपसे पूछनेके लिये वे आयेंगे।" वसुराजा बोला, "मै असत्य कैसे कहूँ ? मुझसे यह नही हो सकेगा।" पर्वतकी माताने कहा, "परतु यदि आप मेरे पुत्रका पक्ष नही लेंगे, तो मैं आपको हत्याका पाप दूंगी।" राजा विचारमे पड गया--"सत्यके कारण मै मणिमय सिंहासन पर अधरमे बैठता हूँ। लोकसमुदायका न्याय करता हूँ। लोग भी यह जानते हैं कि राजा सत्य गुणके कारण सिंहासनपर अतरिक्षमे बैठता है। अब क्या करूँ ? यदि पर्वतका पक्ष न लें तो ब्राह्मणी मरती है, और यह तो मेरे गुरुको स्त्री है।" लाचार होकर अतमे राजाने ब्राह्मणीसे कहा, "आप खुशीसे जाइये । मै पर्वतका पक्ष. लंगा।" ऐसा निश्चय कराकर पर्वतकी माता घर आयी। प्रभातमे नारद, पर्वत और उसकी माता विवाद करते हुए राजाके पास आये । राजा अनजान होकर पूछने लगा-"पर्वत, क्या है '' पवतन कहा, "राजाधिराज | 'अज' का अर्थ क्या है ? यह बताइये।" राजाने नारदसे पूछा-"आप क्या कहते है " नारदने कहा-"'अज' अर्थात् तीन वर्पके 'व्रीहि', आपको कहॉ याद नही है ?" वसुराजाने कहा-"अजका अर्थ हे बकरा, व्रीहि नही।" उसी समय देवताने उसे सिंहासनसे उछालकर नीचे पटक दिया, वसु कालपरिणामको प्राप्त हुआ।
__ इसपरसे यह मुख्य बोध मिलता है कि "हम सबको सत्य और राजाको सत्य एव न्याय दोनो ग्रहण करने योग्य हैं।'
१. द्वि० आ० पाठा०--'जगतका आधार ।' २. द्वि० आ० पाठा--'जगत टिका है।' ३ द्वि० आ० पाठा०--'वह प्रसंग विचार करनेके लिये यही कहेंगे।'
४ द्वि० आ० पाठा०-'सामान्य मनुष्योको सत्य तथा राजाको न्यायमें अपक्षपात और सत्य दोनो ग्रहण करने योग्य हैं।